शनिवार, 15 अगस्त 2015

जय भारत जय हिन्द कहो

मिल-जुल कर खुशियाँ बाटें, प्रेम भाव के साथ रहें।
आजादी के शुभ दिन पर, जय भारत, जय हिन्द कहें ।।

पर कितने बलिदान हुये, इस आज़ादी को पाने में। 
हम भूल न जाएं उन सबको, बस यूँ ही मौज मनाने में॥ 
वीर शहीदो के चरणों में, शीश झुका, कर बद्ध रहें। 
आजादी..

है गर्व तिरंगे पर हमको, ये शान हमारा है यारों। 
नीले अम्बर पर लहराता, अभिमान हमारा है यारों॥
रहे तिरंगा ऊंचा हरदम, सब  भारत को धन्य कहें। 
आजादी.. 

भाषा-बोली है अलग-अलग, पर गीत एक ही गाते हैं। 
हम जात-धरम से ऊपर सब, भारत वंसी कहलाते हैं॥
देश-प्रेम भाईचारे की, बात करें और साथ रहें। 
आजादी..


गौतम-गांधी की धरती है, ये सारी दुनिया जाने है। 
अब चाँद और मंगल पर पहुंचे, सब अपना लोहा माने हैं॥ 
धर्म और विज्ञान समर्पित, देश बनाने जुटे रहें। 
आजादी..

आओ हम मिलकर काम करें, भारत को और बढ़ाना है। 
आने वाला कल अपना है, ये सच करके दिखलाना है॥ 
भेद न कोई आपस में हो, मिलजुल कर सब साथ रहें।
आजादी के शुभ दिन पर, जय भारत जय हिन्द कहें॥ 

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

परछाई

अरे! ये क्या?
मेरी परछाई
कहाँ है मेरी परछाई?

शायद कहीं
पीछे छुट तो नहीं गई?

पर! पर ये कैसे?
परछाई तो कभी
साथ नहीं छोड़ती,

फिर ये कैसा गजब हुआ?

अब क्या करुँ?
किसे पूछूं?
किसे बताऊँ?

ये वो गली नहीं
जो यारों के घर जाती है,
वो मोड़ भी नहीं
जो घर के तरफ
मुड़ता है|

यहाँ तो
सबकुछ पराया
और अनजाना सा है,

चारों ओर-
अँधेरा ही अँधेरा है|
अँधेरा? हाँ! अँधेरा,
फिर परछाई?
अँधेरे में?

भोपाल से प्रकाशित अप्रवाशी भारतीयों की पत्रिका "गर्भनाल" के जुलाई २०१५ के अंक में छपी मेरी कविता