जाती हुयी बहार
लिए जा रही उसके
अरमान,
पत्ता-पत्ता जैसे
झड़ रही हो उसकी
आस,
बिखर रहे हों
तिनका-तिनका उसके
सपने,
मुरझा रहे हों
उसके मुरादों के
फूल,
सूख रही हो
उसके हिम्मत की
डाल,
पर जाके कोई
कह दो बागबान से-
कि बीत जायेंगे
पतझड़ के ये दिन भी,
और उसके चमन में
एक बार-
फिर बहार आएगी॥
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मनीष पाण्डेय "मनु"
शार्लेट, नार्थ कैरोलिना, मंगलवार २३ सितम्बर २००८
लिए जा रही उसके
अरमान,
पत्ता-पत्ता जैसे
झड़ रही हो उसकी
आस,
बिखर रहे हों
तिनका-तिनका उसके
सपने,
मुरझा रहे हों
उसके मुरादों के
फूल,
सूख रही हो
उसके हिम्मत की
डाल,
पर जाके कोई
कह दो बागबान से-
कि बीत जायेंगे
पतझड़ के ये दिन भी,
और उसके चमन में
एक बार-
फिर बहार आएगी॥
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मनीष पाण्डेय "मनु"
शार्लेट, नार्थ कैरोलिना, मंगलवार २३ सितम्बर २००८
1 टिप्पणी:
बहुत दिनों बाद आप ब्लाग की दुनिया में आये मनीष भाई, सचमुच में बहार आई ।
छत्तीसगढिया ब्लाग एग्रीगेटर
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