सोमवार, 14 मई 2001

कविता जन्म लेती है

मुझ जैसा कोई दीवाना
जब थामता है कलम
और होमता है अपनी जवानी

जब सींचता है 
अपने जिगर के खून से 
मन में अंकुरित होते 
विचारों को 

और हवा देता है 
उसे ही जला देने वाली
खयालों के शोलों को 

जब निकल आती है 
कनपटी पर हड्डियाँ 
और धंस जाती हैं आंखे 
उसके अपने ही चेहरे पर 

तब,और तब 
जन्म लेती है एक कविता 
जिसे गाकर सारी मानवता 
गर्व करती है 
अपने मनुष्यत्व पर 

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
मंगलवर 14 मई 2001, बिलासपुर, भारत