मुझ जैसा कोई दीवाना
जब थामता है कलम
और होमता है अपनी जवानी
जब सींचता है
अपने जिगर के खून से
मन में अंकुरित होते
विचारों को
और हवा देता है
उसे ही जला देने वाली
खयालों के शोलों को
जब निकल आती है
कनपटी पर हड्डियाँ
और धंस जाती हैं आंखे
उसके अपने ही चेहरे पर
तब,और तब
जन्म लेती है एक कविता
जिसे गाकर सारी मानवता
गर्व करती है
अपने मनुष्यत्व पर
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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
मंगलवर 14 मई 2001, बिलासपुर, भारत
मनीष पाण्डेय ‘मनु’
मंगलवर 14 मई 2001, बिलासपुर, भारत
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