रविवार, 17 जून 2001

भाव पुष्प

शोभा तू अपने आँगन की,
अभिमान पिता के सपनो का।
माता के आँचल की गरिमा,
विश्वास तुम्ही हो अपनों का॥

है आज पिता के आँगन में,
तुलसी बिरवा की दीप-शिखा।
कल लक्ष्मी बन उस घर जाए,
ब्रह्मा ने जिसके भाग लिखा॥

अधरों पर हो मुस्कान सदा,
पूरित हो तेरी हर आशा।
तू सदा कवँल सी खिली रहे,
है केवल इतनी अभिलाषा॥


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