शनिवार, 1 दिसंबर 2001

उम्र भर के लिए

पता नहीं क्यों
एक अनजाना सा भय
मन को हमेशा 
व्यथित कर देता है 

कि किसी रोज
किसी मोड पर
किसी राह में
या इस अथाह संसार सागर के 
मझधार पर 
कहीं तुम 
मेरा छुड़ा तो ना लोगी

मेरी तनहाई, मेरी बेबसी 
मेरी तड़प,मेरी प्यास
और तुम्हें पाने कि लगन 
बुला रही है तुम्हें

पुकारती है
कि तुम आ जाओ
आ जाओ कि मुझे
तुम्हारे साथ कि जरूरत है

उम्र भर के लिए

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
शनिवार 1 दिसंबर 2001, बिलासपुर, भारत

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