आज गाँव से तो क्या,
देश से इतनी दूर आ बैठा हूँ,
तो याद आती है -
कि कैसे बचपन में
घर से
बस बाहर निकलने पर
माँ का जी घबरा जाता था।
जब मेरी गाड़ी कि रफ्तार
तेज होती है,
तो याद आती है कि कैसे
सायकल को तेज चलाता देख
पापा डांटने लगते थे।
जब किसी मीटिंग में
करता हूँ बड़ी-बड़ी बातें
और लोग तारीफ करते हैं
मेरे बातों कि,
तो याद आती है -
कि कैसे मेरे मुह से
तुतलाती बातें सुन कर
मेरे माता-पिता खुश हो जाते रहे होंगे।
जब कुछ अच्छा खाने को नहीं मिलता
और दिन गुजरता हूँ
पीज़ा-बर्गर खा कर ,
तो याद आती है -
कि कैसे माँ के हाथ की बनाईं
बैगन-करेले की सब्जी नहीं खाता था।
जब लिखता हूँ
कम्पनी के क्लाइंट को
ई - मेल अंग्रेजी मैं,
तो याद आती है -
कि कैसे सिखाते थे पापा
अक्षरो को लिखना
अपने हाथों से
मेरा हाथ पकड़ कर।
जब कभी किसी जूनियर को
धमकाता हूँ
उसकी गलती पर,
तो याद आती है -
कि कैसे डर लगता था
स्कुल में गुरूजी जी झिड़की से।
जब प्रोजेक्ट में आये
किसी नए लड़के को सिखाता हूँ
कोई चीज बार-बार,
तो याद आती है -
कि कैसे चिढ़ता था
दुहराते हुए कोई बात
अपने छोटे भाई को
कुछ सिखाते हुए।
पता नही क्यों?
पर हर आने वाले पल में
बीते हुए पलों कि
याद आती हैं।
---------------------------------------
मनीष पाण्डेय "मनु"
शार्लेट, नार्थ कैरोलिना, सोमवार, 26 नवंबर 2007
देश से इतनी दूर आ बैठा हूँ,
तो याद आती है -
कि कैसे बचपन में
घर से
बस बाहर निकलने पर
माँ का जी घबरा जाता था।
जब मेरी गाड़ी कि रफ्तार
तेज होती है,
तो याद आती है कि कैसे
सायकल को तेज चलाता देख
पापा डांटने लगते थे।
जब किसी मीटिंग में
करता हूँ बड़ी-बड़ी बातें
और लोग तारीफ करते हैं
मेरे बातों कि,
तो याद आती है -
कि कैसे मेरे मुह से
तुतलाती बातें सुन कर
मेरे माता-पिता खुश हो जाते रहे होंगे।
जब कुछ अच्छा खाने को नहीं मिलता
और दिन गुजरता हूँ
पीज़ा-बर्गर खा कर ,
तो याद आती है -
कि कैसे माँ के हाथ की बनाईं
बैगन-करेले की सब्जी नहीं खाता था।
जब लिखता हूँ
कम्पनी के क्लाइंट को
ई - मेल अंग्रेजी मैं,
तो याद आती है -
कि कैसे सिखाते थे पापा
अक्षरो को लिखना
अपने हाथों से
मेरा हाथ पकड़ कर।
जब कभी किसी जूनियर को
धमकाता हूँ
उसकी गलती पर,
तो याद आती है -
कि कैसे डर लगता था
स्कुल में गुरूजी जी झिड़की से।
जब प्रोजेक्ट में आये
किसी नए लड़के को सिखाता हूँ
कोई चीज बार-बार,
तो याद आती है -
कि कैसे चिढ़ता था
दुहराते हुए कोई बात
अपने छोटे भाई को
कुछ सिखाते हुए।
पता नही क्यों?
पर हर आने वाले पल में
बीते हुए पलों कि
याद आती हैं।
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मनीष पाण्डेय "मनु"
शार्लेट, नार्थ कैरोलिना, सोमवार, 26 नवंबर 2007
1 टिप्पणी:
मनीष भाई, बहुत बहुत बधाई । अच्छी कवितायें लिखते हैं भाई आप । इस ब्लाग को हिन्दी फीड एग्रीग्रेटरों में पंजीकरण करें एवं वहां से नियमित पाठक पावें एक फीड एग्रीगेटर का पता यहां दे रहा हूं : http://www.chitthajagat.in/ इनका हिन्दी टूलबार भी डाउनलोड कर लेवें तो सभी हिन्दी गतिविधिया एक पटटी में मिल जायेंगी शेष कोई जानकारी हो तो हमें tiwari.sanjeeva@gmail.com में मेल कीजियेगा ।
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