कच्चे-कच्चे रंग लगाकर,
मन भी कच्चा होता जाए
मन जिसका पक्का हो वो ही,
बढकर मुझको रंग लगाये.
पेडो को काटा जो हमने,
हरियाली धू-धू जल जाए.
आओ मन के मैल जलाकर,
हम सच्ची होलिका जलाएं.
मन जिसका पक्का हो वो ही...
नशा-भांग से चढ़े बुराई,
मर्यादा की साख गिराए.
ताशे-ढोल बजाकर आओ,
गारी नही, फगुनवा गायें.
मन जिसका पक्का हो वो ही...
इस होली में आओ मिलकर,
ऐसे सबको रंग लगायें.
तन रंगे, मन रंगे सबका,
प्रेम-भावः जीवन रंग जाए.
मन जिसका पक्का हो वो ही...
नीले-पीले, हरे-गुलाबी,
रंग नही ये मन को भाये.
देशप्रेम का रंग-रंगीला,
चलो बसंती रंग लगायें.
मन जिसका पक्का हो वो ही...
5 टिप्पणियां:
bahut achchi rachna hai.
pyari kavita hai...m sure bhabhiji se inspiration mili hogi:)
bahot badhiya hai....keep it up...
jane unjane , bhule - bisray , sab ko aao gale lagaye. kahe holi ka parv yahi ke, prem rang me jag rang jaye !! - -parikshit
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