चलते-चलते जीवन पथ पर, एक नदी के सुंदर तट पर| देखा जो तरुवर की छाया, सुस्ताने को मन हो आया|| | ||
कर विचार यह सुंदर उपवन, सुखकर होगा इसमें जीवन| संगी-साथी मीत बनाये, प्रेम भाव के दीप जलाये|| | ||
यह करते कुछ समय बिताया, फिर नियति ने खेल दिखाया| कल तक जिसको श्रम से साधा, आज लगे वह पग में बाधा|| | ||
हा! कितना छल? मायामय जीवन! पल-पल नित नूतन परिवर्तन| तिनका-तिनका नीड़ बनाकर, फिर चल निकले नयी राह पर|| | ||
----------------------------------------------------- मनीष पाण्डेय "मनु" नागपुर सोमवार, २८-०४-२००३ |
सोमवार, 28 अप्रैल 2003
नयी राह
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