बहुत
अनूठा सा है
ये रिश्ता
उन सब से
अलग
जो बस
बनते चले गए
जन्म के साथ
ये रिश्ता तो
हमने
हमने
खुद बनाया है
बचपन के
भोले पन से
सुरु कर के
और
निभा रहे हैं
और
निभा रहे हैं
तरुणाई के रास्ते
आज तक
इस रिश्ते में
नहीं है
कोई ऊँच-नीच
का झँझट
और ना ही
कोई
प्रतिबन्ध है
प्रतिबन्ध है
आदर्श के
किसी साँचे में
उतरने का
इस रिश्ते में
तुम हो
अपने आप
के जैसे
और मैं
भी हूँ
जस का तस
नहीं है
कोई बनावट
इसलिए
नहीं लगता
कि जैसे
कोई साँकल
पैरों पे
बाँधी हो
और कोई
दिखावा भी
नहीं है
तभी तो
कभी नहीं
होती घुटन
तुम्हारे
आस पास
होते हुए
भले ही
लम्बे समय तक
नहीं होती बात
पर
जब भी मिले
वही गर्माहट
और वही
उन्मुक्त
हँसी-ठहाके
खुद को
बड़ भागी
समझता हूँ
के तुम
मेरे साथी
मेरे मित्र हो
ईश्वर से
करता हूँ
यही प्रार्थना
कि
तुम रहो
सदा खुशहाल
और
हमारी ये दोस्ती
तुम रहो
सदा खुशहाल
और
हमारी ये दोस्ती
हमेशा ऐसे ही
बनी रहे|
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मनीष पाण्डेय, "मनु"
लक्सेम्बर्ग, बुधवार ०१ जुलाई २०२०
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