था दुश्मन बैठा ताक में
वे नोबेल के फ़िराक़ में
वे नोबेल के फ़िराक़ में
बस में बैठ गए जाके
जनता मूरख बन ताके
जनता मूरख बन ताके
ध्यान जो भटका लीडर का
वही है मौक़ा गीदड़ का
अंधेरे में करके सीमा पार
आया कारगिल के द्वार
आया कारगिल के द्वार
पीठ में खंजर जो घोंपा
समझ में आया तब धोका
समझ में आया तब धोका
देश की आन बचाने को
दुश्मन को मार भगाने को
दुश्मन को मार भगाने को
जहां पर जम जाती है हाड़
वहाँ पर अपना झंडा गाड़
वहाँ पर अपना झंडा गाड़
बढ़ाई भारत माँ की शान
शीश दे वीरों ने बलिदान
शीश दे वीरों ने बलिदान
लड़े हैं और लड़ेंगे हम
दाँत खट्टे करेंगे हम
दाँत खट्टे करेंगे हम
दुश्मन भी जाने है ये बात
तभी तो छुपके करता घात
तभी तो छुपके करता घात
अगर तुम खोए ना होते
माँओं के पूत नहीं खोते
माँओं के पूत नहीं खोते
मगर तुम भी भारत के लाल
इसलिए कहता बात सम्हाल
इसलिए कहता बात सम्हाल
तुम्हारे जैसे नेता आज नहीं
कुर्सी को लड़ते लाज नहीं
कुर्सी को लड़ते लाज नहीं
कवि हृदय था कोमल मन
करता हूँ तुमको आज नमन
करता हूँ तुमको आज नमन
करते थे राजनीति निश्छल
है कीर्ति तुम्हारी सदा अटल
है कीर्ति तुम्हारी सदा अटल
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मनीष पाण्डेय, "मनु"
अलमेर, नीदरलैंड्स, गुरुवार 13 अगस्त 2020
मनीष पाण्डेय, "मनु"
अलमेर, नीदरलैंड्स, गुरुवार 13 अगस्त 2020
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