हे! भरत,
अच्छा हुआ
तुम तब आये,
आज आते
तो
राम को
वन भेजने का
सारा षड्यंत्र
तुम्हारा ही
माना जाता।
हे! कुन्ती,
अच्छा हुआ
तुम तब आयी,
आज आती
तो विपक्षी
सीधे तुम्हें
बंदी बनाके
तुम्हारे बेटों की
कलाइयाँ
मरोड़ देते।
हे! प्रह्लाद,
अच्छा हुआ
तुम तब आये,
आज आते तो
तुम भक्तराज
नहीं
अपने पिता के
प्राण हंता
कहलाते।
हे! सुदामा,
अच्छा हुआ
तुम तब आये,
आज आते तो
बाहर खड़ा
दरबान ही
तुम्हें टरका देता।
हे! अंगद,
अच्छा हुआ
तुम तब आये,
आज आते तो
युवराज नहीं
बंदी
बनाया जाते।
हे! दूर्वासा,
अच्छा हुआ
तुम तब आये,
आज आते तो
ऋषि मान
पूजे नहीं
लताड़े जाते।
मनीष पाण्डेय “मनु”
लक्सम्बर्ग, १४-अगस्त-२०२०
शुक्रवार, 14 अगस्त 2020
अच्छा हुआ
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