ये तो सरासर चीटिंग है विधाता
भला है कौन ऐसे रिश्ते निभाता
तुमने कहा था तुम रक्षक हो मेरे
छाया तुम्हारी होगी साँझ सवेरे
बादल दुखों के न कभी मुझको घेरे
हमेशा रहोगे तुम जो साथ मेरे
कैसे तो फिर यूँ मुसीबत है आता
ये तो सरासर चीटिंग है विधाता
पत्ता ना डोले बिना तेरी मर्जी
फिर क्यों भला छाई इतनी खुदगर्जी
लोगों को ठगते बने बाबा फर्जी
सुनो तो हमारी लगाते हैं अर्जी
लालच में आदमी कुछ भी कर जाता
ये तो सरासर चीटिंग है विधाता
दिया दे करम जो मेरे हाथ में है
क्यों परिणाम भी फिर नहीं साथ में है
मेहनत गरीबों की दिन रात में है
भरे जेब सेठों की हर बात में है
करें भी तो क्या कुछ समझ नहीं आता
ये तो सरासर चीटिंग है विधाता
भलाई से हमेशा होता ना भला
सच्चाई तो जाने किस कोने डला
चलके भी राह सीधे नहीं कुछ मिला
बस जीते वही जो दांव उलटे चला
हेल्दी खाने से स्वाद नहीं आता
ये तो सरासर चीटिंग है विधाता
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मनीष पाण्डेय “मनु”
लक्सम्बर्ग, गुरुवार 03-सितंबर-2020
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