कहावतों की उलझन
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कहावतें भी कभी-कभी
बात समझाने के बदले
उलझन बढ़ाते हैं,
आप नही मानते
तो चलिये
आपको
कुछ कहावतें
सुनाते हैं|
जो कहते हैं
ईश्वर है
सबका रख वाला,
तो फिर क्यों कहते हैं
भूखे भजन
न होए गोपाला?
जब काजल की
कोठरी में जाने से
हाथ
हो जाते हैं काले,
तो साँपों से लदे
चन्दन
की लकड़ी
क्यों नहीं बनते
विष वाले?
वो कहते हैं
मीठा बोलो
और न दुखाओ
दिल किसी का,
तो फिर
क्यों कहते हैं
भावनाओं को देखो
और भूल जाओ
उसके शब्द
और तरीका?
जो कहते हैं
ऊपर वाला
सब देखता है भाई,
तो फिर क्यों कहा
समरथ को
नहीं दोष गोसांई?
अजी छोड़िए,
ये उलाहने भी
अपनी सुविधा से
बनाए जाते हैं,
जहाँ जैसा हो मौका
वैसे तीर
चलाये जाते हैं|
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मनीष पाण्डेय “मनु”
लक्सम्बर्ग, सोमवार 21-सितंबर-2020
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