आँसू
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आँसू
की बात भी
एकदम निराली है
और
रँग-बिरँगी हैं
उसकी छटाएँ
आँसू
वो शय है
जो अमीर-गरीब
काले-गोरे, और
बड़े-छोटे में
भेद नहीं करता
आँसू
भाँप लेता है
दिल की
गहराईओं में छिपे
तड़प को
और चुपके से
आकर बैठ जाता है
पलकों की छोर पर
हमारा दुःख बाँटने
आँसू
ताड लेता है
हमारी खुशी
और छलक पड़ता है
नैनों की कोर से
आँसू
न जाने कैसे
जान लेता है
लाडली बिटिया के
बिदाई का पल
और
भर जाता है
बाबुल के नैनों में
आँसू
जब लुढ़कता है
बच्चे की आँखों से
तो माँ के दिल को
कचोटता है
और जब
सुनता है
पिता की डाँट
तो कर देता हैं
आँखे लाल
आँसू
जागता है रात भर
हमारे साथ
और बन जाता है
सावन की झड़ी
किसी की याद में
आँसू
कभी तो
डबडबाई आँखों में
मोतियों सा चमकता है
या फिर कभी तो
दहकता है लावे जैसा
आँसू
जब निकलता है
पश्चाताप की ज्वाला में
पिघलकर
तो धो देता है
हमारी गलतियाँ
आँसू
एक ऐसा
सच्चा साथी है
जो सुख और दुःख
दोनों में
साथ निभाता है
एक बराबर
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मनीष पाण्डेय “मनु”
लक्सम्बर्ग, मंगलवार 29-दिसम्बर-2020
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