शब्द फूटते हैं
मूँह से
लिख भी लेता हूँ
काग़ज़ पर
कलम से
लेकिन फिर भी
बोल नहीं पाता
दिल की बात
पता नहीं
क्या हो गया है
मेरी आवाज़ को
कहीं खो गयी है
या दब गई है
सीने में
किसी डर से?
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मनीष पाण्डेय “मनु”
लक्सम्बर्ग, शुक्रवार 21-मई -2021
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