मनाओ जश्ने आजादी कि ये त्यौहार जैसा है
मगर ये बात मत भूलो कि ये उपकार जैसा है
अगर कीमत नहीं जानो तो सुन लो देश के प्यारों
लिया है मोल देकर सर ये उस उपहार जैसा है
मुबारक हो तुम्हें गुलशन ये कलियाँ-फूल, ये डाली
इन्हे सींचा मगर जिसने लहू के धार जैसा है
लगाई जान की बाजी कभी अपने बुजुर्गों ने
बिंधे हैं शीश वीरों के कटीले तार जैसा है
अभी उतरी नहीं मेहँदी है जिसके कोरे हाथों से
उसी दुल्हन के माथे से लुटे शृंगार जैसा है
दिया बलिदान है जिसने बुढ़ापे के सहारे का
उसी माँ के ह्रदय में मौन के चीत्कार जैसा है
सम्हलना हर कदम पर तुम, कभी बेसुध नहीं होना
है बैठा ताक में दुश्मन गिराते लार जैसा है
तिरंगा शान है अपना इसे झुकने नहीं देना
भाल के चंद्र जैसा है ये मुक्ता हार जैसा है
मैं माँ भारत का बेटा हूँ उसी के गीत गाता हूँ
मेरा हर शब्द उसकी वंदना उद्गार जैसा है
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मनीष पाण्डेय “मनु”
भारत, रविवार 15-अगस्त -2021