जब "हम"
या कहें -
"मैं" और "तुम"
साथ नहीं होंगे,
तब भी होगी
तुम्हारी होठों पे "हंसी"
और
मेरे लबो पे "मुस्कान",
क्योंकि
तब भी रहेंगी
हमारे दिलों में
बीते दिनों की "यादें"
जो उस हंसी
और इस मुस्कान को
और "खुबसूरत" बनायेंगी।
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मनीष पाण्डेय 'मनु'
शनिवार 22 दिसंबर 2001, बिलासपुर, भारत