शनिवार, 22 दिसंबर 2001

यादें - 1

जब "हम"
या कहें -
"मैं" और "तुम"
साथ नहीं होंगे,

तब भी होगी
तुम्हारी होठों पे "हंसी"
और
मेरे लबो पे "मुस्कान",

क्योंकि
तब भी रहेंगी
हमारे दिलों में
बीते दिनों की "यादें"

जो उस हंसी
और इस मुस्कान को
और "खुबसूरत" बनायेंगी।

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मनीष पाण्डेय 'मनु'
शनिवार 22 दिसंबर 2001, बिलासपुर, भारत

यादें - 2

जब
तुम और मैं 
या कहें हम 
साथ नहीं होंगे 

तब भी होगी 
तुम्हारे होठों पर हँसी
और मेरे अधरों पर शब्द होंगे

क्योंकि 
कोई किसी के बिना
रुकता नहीं 

और दिलों में बसी यादें
उस हँसी और
उन शब्दों को 
और खूबसूरत बनाएँगी
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मनीष पाण्डेय 'मनु'
शनिवार 22 दिसंबर 2001, बिलासपुर, भारत

शनिवार, 1 दिसंबर 2001

उम्र भर के लिए

पता नहीं क्यों
एक अनजाना सा भय
मन को हमेशा 
व्यथित कर देता है 

कि किसी रोज
किसी मोड पर
किसी राह में
या इस अथाह संसार सागर के 
मझधार पर 
कहीं तुम 
मेरा छुड़ा तो ना लोगी

मेरी तनहाई, मेरी बेबसी 
मेरी तड़प,मेरी प्यास
और तुम्हें पाने कि लगन 
बुला रही है तुम्हें

पुकारती है
कि तुम आ जाओ
आ जाओ कि मुझे
तुम्हारे साथ कि जरूरत है

उम्र भर के लिए

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
शनिवार 1 दिसंबर 2001, बिलासपुर, भारत