कुछ तुकबन्दियाँ सुनकर
लोग कहने लगे हैं
कि मैं कवि हूँ.
साहित्य के क्षितिज पर
उगता हुआ
रवि हूँ.
सबेरा होने को है
और कालिमा
दम तोड़ रही है,
पर अपने पीछे
मन में
एक सवाल छोड़ रही है.
जब मेरी कविता के
उजाले में
उनका दोष दिखाई देगा,
तब भी क्या ये समाज
मुझे हाथों-हाथ लेगा?
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मनीष पाण्डेय "मनु"
जाँजगीर, शनिवार, १० जुलाई २०००
लोग कहने लगे हैं
कि मैं कवि हूँ.
साहित्य के क्षितिज पर
उगता हुआ
रवि हूँ.
सबेरा होने को है
और कालिमा
दम तोड़ रही है,
पर अपने पीछे
मन में
एक सवाल छोड़ रही है.
जब मेरी कविता के
उजाले में
उनका दोष दिखाई देगा,
तब भी क्या ये समाज
मुझे हाथों-हाथ लेगा?
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मनीष पाण्डेय "मनु"
जाँजगीर, शनिवार, १० जुलाई २०००
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