प्रश्न उठाता हूँ मैं सीधा, आज भरी सभा में सबसे। जो हम उसको कहते दुर्गा, फिर क्यों बलि उसी की देते? माँ होती है सबको प्यारी, बहना सबकी बड़ी दुलारी। पत्नी बनकर वो लेती है, पुरे घर की जिम्मेदारी।। बेटी की है इतनी इच्छा, पूजा नहीं बस प्यार चाहिए। जन्म ले सके इस धरती पर, बस इतना अधिकार चाहिए।। कल को जब बेटी न होगी, बहु कहाँ से फिर आएगी? बेटे सब रह जायें कुवारे, दुनिया सारी रुक जाएगी।। अब भी समय बचा है आओ, एक नयी मिशाल बनायें। बेटी के पैदा होने पर, दिवाली सा दिये जलायें।। ============================== मनीष पाण्डेय “मनु” लक्सम्बर्ग, रविवार 23-सितम्बर -2013 |
रविवार, 23 सितंबर 2012
बेटी
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