मंगलवार, 24 मार्च 2020

तुम्हारी यादें

यादें,
तुम्हारी यादें,

किताबों में दबे
सूखे फूल की पखुड़ियों तरह,
यादों के पन्नों खुलते ही
ख़ुशबू बिखेरती
तुम्हारी यादें!

कभी तो
चुपके से चली आती हैं
दबे पाँव,
और कभी
किसी सैलाब की तरह
सब कुछ बहा ले जाती हैं
तुम्हारी यादें!

कभी तो
बहुत रुलाती हैं
और कभी खुब हँसाती हैं,
सचमुच 
तुम्हारी तरह ही
बहुत प्यारी
मगर बिलकुल मासूम हैं,
तुम्हारी यादें!

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मनीष पाण्डेय "मनु"
लक्सेम्बर्ग, मंगलवार २४ मार्च २०२० 

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