ये सड़क यहीं है
दशकों से,
न कहीं जाती है
और न बदलती है
कभी किसी को
भटकाती है
तो किसी को
सही राह ले आती है
ये सड़क
कभी तो किसी
नई नवेली दुल्हन को
ले जाती है पिया के घर
तो कभी बिटिया को
त्योहारों में
लाती है वापस पीहर
ये सड़क
सुनती है
आते जाते लोगों के
दुख-दर्द की दास्तान
और उनके हँसी ठट्टों में
खिलखिलाती भी है
ये सड़क
जाने कितनों को
पहुँचती है
उनके मंजिलों तक
ये सड़क
जोड़ती है
दूर-दराज में रहने वालों को
और उनके जीवन को
आसान बनाती है
खुद बेजान सी
ये सड़क
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मनीष पाण्डेय “मनु”
लक्सम्बर्ग, शनिवार 13-मार्च-2021
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