भारत की माटी
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माटी होती है माटी तो
देश की हो या पर-देशी हो
सुरभि सौंधी हवा महकती
बरखा की बूँदें पड़ती जो
पर मेरे भारत की माटी
चन्दन बन माथा चमकाती
दाना, पानी और बिछौना
माँ के जैसे सब कुछ लाती
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माटी होती है माटी तो
देश की हो या पर-देशी हो
सुरभि सौंधी हवा महकती
बरखा की बूँदें पड़ती जो
पर मेरे भारत की माटी
चन्दन बन माथा चमकाती
दाना, पानी और बिछौना
माँ के जैसे सब कुछ लाती
जिसमें मेरा बीता बचपन
यादों में है वो घर आँगन
खेले खेल जहाँ हमजोली
उन गलियों में खोया है मन
भारत से तुम जा सकते हो
लेकिन नहीं भुला सकते हो
अपने साँसों में तुम उसकी
खुशबू हरदम पा सकते हो
लेकिन नहीं भुला सकते हो
अपने साँसों में तुम उसकी
खुशबू हरदम पा सकते हो
इसीलिए तो जुड़ा हुआ हूँ
फिर से उसमें मिल जाऊँगा
इस आशा में बँधा हुआ हूँ
भारत ही मेरी माँ रहती
वो भी मेरी राहें तकती
बरसों बीते बिछड़े तुमसे
आ जा मेरे बेटे कहती
मनीष पाण्डेय "मनु"
लक्ज़ेम्बर्ग, बुधवार 03-जून-2020
ना था कोई लक्ष्य विशेष
जाने कौन घड़ी थी जिसमें
निकल चला आने परदेश
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