एक हथिनी को
मार डालाकिसी विक्षिप्त ने
हाय!
वो तो
गर्भिणी थी
अब मचा है
पुरे भारत में
कोलाहल
और
सब लगे हैंउसकी निन्दा में
वैसे ही जैसे
ऑस्ट्रेलिया के
जंगल की आग में
जले अनगिनत
पशु-पक्षियों
के लिए
पीट रहे थे छाती
कपटी इन्सान!
खड़ियाली
आंसू बहाने में
माहिर है
क्या वो सब
जीव नहीं हैं
जिन्हे मारकर
रोज सजाता है
अपने खाने की
थाल?
कोई अपने
उन्माद के लिए
मारता है
तो कोई अपने
स्वाद के लिए
पर मारते तो
दोनों हैं ना?
समझायेगा
कोई मुझे
ऐसे मारने
और वैसे मारने
का फर्क?
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मनीष पाण्डेय "मनु"
लक्सेम्बर्ग, शुक्रवार ०५-जून -२०२०
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