मानव तू केवल कठपुतली - नवगीत
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कुदरत के
इस रंगमंच का,
मानव
तू केवल
कठपुतली
पहुँच गया है
द्वार चाँद के
बना लिया है
उड़न खटोला
डींग हाँकता
घूम रहा है
आखिर तू ठहरा
बड़बोला
आया एक
विषाणु जिसने
कर दी तेरी
हालत पतली
अगड़े-पिछड़े
भेद ना कोई
देश पड़े हैं
चित चौखाने
किसे बचाएँ
छोड़े किसको
अपने कौन
कौन बेगाने
धंधा-पानी
सब चौपट है
जान बचाना
जंग है असली
जंगल काटे
जल-थल लूटा
किया निसर्ग का
रूप भयंकर
इतराता था
है विकास कह
बन के बैठा
बड़ा सिकंदर
खोदा उस
गड्ढे में गिरके
अकड़न सब
तेरी निकली
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मनीष पाण्डेय "मनु"
लक्ज़ेम्बर्ग, रविवार ७ जून २०२०
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कुदरत के
इस रंगमंच का,
मानव
तू केवल
कठपुतली
पहुँच गया है
द्वार चाँद के
बना लिया है
उड़न खटोला
डींग हाँकता
घूम रहा है
आखिर तू ठहरा
बड़बोला
आया एक
विषाणु जिसने
कर दी तेरी
हालत पतली
अगड़े-पिछड़े
भेद ना कोई
देश पड़े हैं
चित चौखाने
किसे बचाएँ
छोड़े किसको
अपने कौन
कौन बेगाने
धंधा-पानी
सब चौपट है
जान बचाना
जंग है असली
जंगल काटे
जल-थल लूटा
किया निसर्ग का
रूप भयंकर
इतराता था
है विकास कह
बन के बैठा
बड़ा सिकंदर
खोदा उस
गड्ढे में गिरके
अकड़न सब
तेरी निकली
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मनीष पाण्डेय "मनु"
लक्ज़ेम्बर्ग, रविवार ७ जून २०२०
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