गुरुवार, 22 जून 2000

हे राम मेरे तब तुम आना

जब एकाकी मन घबराए,
सूनेपन से जी भर जाये |
ले समय कभी उलटे फेरे,
हो अंधकार चहुंदिक मेरे|
पर चाहूँ "दीप शिखा" पाना,
हे! राम मेरे, तब तुम आना || १ ||


जब थक जाऊँ जीवन पथ पर,
और प्यासा बन भटकूँ दर-दर|
कहीं कोई शीतल छाँव न हो,
चलने में शक्षम पांव न हों |
पर चाहूँ नभ में "उड़" जाना,
हे! राम मेरे, तब तुम आना || २ ||


जब धीरज मैं न रख पाऊँ,
अपनी छाया से डर जाऊँ|
कोई दिशा मिले ना जीवन को,
न थाह मिले मेरे मन को|
पर चाहूँ "तुलसी" बन जाना,
हे! राम मेरे, तब तुम आना || ३ ||


जब कोई न थामे हाथ मेरे,
न हँसते-रोते साथ मेरे|
जब मेरे संग न कोई चले,
ना मुझे कहीं से मान मिले|
पर चाहूँ मैं भी "इठलाना"
हे! राम मेरे, तब तुम आना || ४ ||
                 विश्वास करे ना जग मुझ पर,
खो जाये बढ़ने का अवसर|
यदि साहस मैं ना कर पाऊँ,
और क्षोभ-ग्लानि से भर जाऊँ|
पर चाहूँ फिर से "उठ" जाना,
हे! राम मेरे, तब तुम आना || ५ ||


जब पड़े दुःखों का विष पीना,
और हो दुरूह जीवन जीना|
कोई रंग बचे न स्वप्नों में,
विश्वास बंधे न अपनों में|
पर चाहूँ फिर से "मुस्काना",
हे! राम मेरे, तब तुम आना || ६ ||


जब क्षुद्र-कर्म में लग जाऊँ,
स्वारथ-शोषण में सुख पाऊँ|
नश्वर का लोभ करे यह मन,
और अर्थ रहित बीते जीवन |
पर चाहूँ "समिधा" बन जाना,
हे! राम मेरे, तब तुम आना || ७ ||


जब मोह रहे ना जीवन से,
और दूर हटे लालच मन से|
अंतर्मन करुण पुकार करे,
और मन मेरा चीत्कार करे|
पर चाहूँ मैं "मुक्ति" पाना,
हे! राम मेरे, तब तुम आना || ८ ||

जब सत के पथ न चल पाऊँ,
जब भी कुमार्ग को अपनाऊँ|
ना राष्ट्र-भूमि का मान करूँ,
अलगाव द्वेष के भाव धरूँ|
पर चाहूँ "गाँधी" बन जाना,
हे! राम मेरे, तब तुम आना || ९ ||




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मनीष पाण्डेय "मनु"
जाँजगीर (छग), गुरुवार २२-जून -२०००