मंगलवार, 14 जून 2022

जिन्दगी

 जिन्दगी
तू भी अजब,
कभी धूप
कभी छाँव है

कभी खुशियों का
गुलदस्ता
तो कभी
बारूदी सुरँग में
पड़ा जैसे पाँव है

कभी बच्चे की 
हंसी ठठोली
और खिलखिलाहट

तो कभी
बिना वजह
बेचैनी, चिंता
या छटपटाहट

कभी मौज
और मस्ती करे
यारों के संग

कभी तन्हाई
और उदासी में
हो जाए बदरंग

कभी अपनों ने
पीठ में 
ख़ंजर चलाया

तो गैरों ने
थाम कर
गिरने से बचाया

हँसते-हँसते
आँखो में
भर जाता है पानी

फिर भी 
दुःखों के सागर में
आस्था की कहानी

जितना भींचो
उतनी 
सरकती जाय

लेकिन
खुलकर जीयो
तो महकती जाये

वाह री ज़िंदगी
तेरे ढब हैं
निराले

कब साथ छोड़े
या किस से
निभाले

सुन!
तेरा हर रूप-रंग
मुझे दिल से
है स्वीकार

ओ! जिन्दगी
हर हाल में 
तेरा साथ निभाने
आजा,
मैं हूँ तैयार

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
लक्सम्बर्ग, बुधवार 14 मई 2022

शनिवार, 4 जून 2022

बेवकूफ

दुनिया में 
सबसे बड़ी बेवकूफी है
समझदार होना
उनके हिस्से आता है
सोचना-समझना
पहचाना-बोलना
तड़पना और भुगतना

दुनिया में 
सबसे बड़ी कमजोरी है
मजबूत होना
उनके हिस्से आता है
देखना-करना
सम्भालना-सहेजना
संवारना और सुधारना

दुनिया में सबसे बड़ा दुःख है
सहनशील होना
उनके हिस्से आता है
पीना-गटकना
त्यागना-भोगना
सहना और झेलना

वे लोग
ना कुर्सी पर बिठाए जाते हैं
ना पगड़ी बँधाए जाते हैं
ना दुलारे जाते हैं
ना सिर चढ़ाए जाते हैं

धर दिया जाता है
दो जहाँ का बोझ
काँधे उनके
और खड़ा कर दिया जाता
धूप-बरसात में
ऐटलस की तरह
नंगा करके 

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
लक्सम्बर्ग शनिवार 4 जून 2022