जिन्दगी
तू भी अजब,
कभी धूप
कभी छाँव है
कभी खुशियों का
गुलदस्ता
तो कभी
बारूदी सुरँग में
पड़ा जैसे पाँव है
कभी बच्चे की
हंसी ठठोली
और खिलखिलाहट
तो कभी
बिना वजह
बेचैनी, चिंता
या छटपटाहट
कभी मौज
और मस्ती करे
यारों के संग
कभी तन्हाई
और उदासी में
हो जाए बदरंग
कभी अपनों ने
पीठ में
ख़ंजर चलाया
तो गैरों ने
थाम कर
गिरने से बचाया
हँसते-हँसते
आँखो में
भर जाता है पानी
फिर भी
दुःखों के सागर में
आस्था की कहानी
जितना भींचो
उतनी
सरकती जाय
लेकिन
खुलकर जीयो
तो महकती जाये
वाह री ज़िंदगी
तेरे ढब हैं
निराले
कब साथ छोड़े
या किस से
निभाले
सुन!
तेरा हर रूप-रंग
मुझे दिल से
है स्वीकार
ओ! जिन्दगी
हर हाल में
तेरा साथ निभाने
आजा,
मैं हूँ तैयार
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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
लक्सम्बर्ग, बुधवार 14 मई 2022