शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

गजल - देखो २

समझते नहीं वो मेरा प्यार देखो
हैं रूठे हुए आज सरकार देखो

बड़ी कातिलाना हैं उनकी अदाएं
ना हामी भरी और ना इनकार देखो

हमने शिकायत में लब जो हिलाए
सुना हो गये हैं वो बीमार देखो  

बड़ी खलबली आज तारों में होगी
फलक चाँद, छज्जे मेरा यार देखो

सितारे लगा दूँ मैं उसके दुपट्टे
कहता लड़कपन का है प्यार देखो

उनसे नजर मिल गई जो अचानक
गुलाबी हुए उनके रूखसार देखो

अपना समझते हो फिर साथ आओ
चलो हम चलें चाँद के पार देखो

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
अलमेर, नीदरलैंड्स, शुक्रवार ०६ जनवरी २०२३ 

गजल - देखो

कैसी ये है सोच बीमार देखो
है मतलब से इनका सरोकार देखो

जोड़े सुहागन के जिसके सिले थे
वो जनता खड़ी यूँ ही लाचार देखो

यहाँ हुक्मरानों ने कुर्सी की खातिर
खड़ा कर दिया मुल्क बाजार देखो 

अंधेर नगरी ये कैसी अजब सी
है जनता खड़ी नग्न दरबार देखो 

शहीदों की ख़ातिर वतन के हवाले
फकत इक बना दी है मीनार देखो

है मौक़ा परस्ती की ऐसी रवायत
नहीं कोई दुश्मन नहीं यार देखो 

औरों पे उँगली उठाना सहज है
किया तुमने खुद क्या जरा यार देखो

मैं अपने गिरहबाँ में झाँकू तो जानूँ
नहीं कोई मुझसा गुनहगार देखो 

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
अलमेर, नीदरलैंड्स, शुक्रवार ०६ जनवरी २०२३ 

मंगलवार, 3 जनवरी 2023

हम बदलें क्या?

साल भी आखिर
बदला गया है
तो अब आयो
हम बदलें क्या? 

आपाधापी
वही पुरानी
रोज-रोज की,
थोड़ी फुर्सत
अपनी खातिर
हम कर लें क्या?


सोफा-कुर्सी
पड़े हूए हैं
उसी जगह पर ,
सुबह-शाम को
जरा सैर पर 
हम निकलें क्या? 

संगी-साथी
वही पुराने
जरा निखट्टू,
उन्हें बुलायें
या फिर जायें
हम मिलने क्या?

ऊँचा उठने 
की चाहत में 
फिरते मारे,
थोड़ा रुक कर
इस पल को भी 
हम जी लें क्या?

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
नीदरलैंड्स, मंगलवार 3 जनवरी २०२३

रविवार, 1 जनवरी 2023

नये साल में


आस से पूरे
जीवन से भरे
साँझ-सवेरे हों,
इस नए साल में 
कुछ पुराने भी
सपने पूरे हों।


किताब से जीवन के
धूल झाड़ 
पन्ने कुछ खोलो,
कहानी कौन सी
रह गई अधूरी
जरा टटोलो। 
किस  पन्ने पर
जाने कौन से
किस्से उकेरे हों…

खोल के 
दिल का पिटारा
उन्हें निकालो,
कुछ नाजुक से हैं
जरा ध्यान से
थामो सम्हालो।
क्या पता 
एहसासों के 
कैसे पल बटोरे हों.. 

देखो जरा
अपने भीतर 
झांको-निहारो,
कौन सी आस
दफन है सीने में
उसे फिर से उभारो।
नींव के नीचे
क्या पता शायद 
दबे कंगूरे हों…

जमाने के डर से 
अपना मन 
मार कर,
या किया नहीं कुछ
अपने ही आप से
हार कर। 
फिर से सजाओ
मन के अरमां
जो आधे-अधूरे हों,
इस नए साल में 
कुछ पुराने भी
सपने पूरे हों

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
नीदरलैंड्स, रविवार १ जनवरी २०२३