शनिवार, 28 मई 2022

मैं कौन हूँ?

 मैं कौन हूँ?

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उसमें बसी है

मेरी जान

किसी तोते की तरह


मैं चाहता हूँ

छुपाकर रखना

उसे दुनिया की नजर से


मेरे सिवा कोई और

उसे देख ना सके

छू ना सके 


गर वो तोता है

तो फिर 

मैं कौन हूँ?

प्रेम राक्षस!!


मनीष पाण्डेय ‘मनु

लक्सम्बर्ग शनिवार 28 मई 2022

गुनाह

घण्टों बातें
करती है
मिलने आती है
जब भी पूछा
दिल का हाल तो 
हँसके टाल जाती है


साथ है

पर साथ नहीं

उससे बुरी

कोई बात नहीं

ना मिले उसका प्यार

तो उससे बदतर

हालात नहीं


क्या सितम है

मेरा होके भी

वो मेरा  हुआ

सुलग रहे हैं हम

और ज़िंदगी हो गई

धुआँ-धुआँ


ना बेवफा है

और ना ही

सितमगर है

लेकिन 

उसका प्यार

एक भरम भर है 


इससे अच्छा तो 

कह दे साफ

कोई नाता नहीं

इस तरह घुट-घुट

अब और

जिया जाता नहीं


लेकिन डरता हूँ

उसने “ना” कहा तो

क्या जी पाऊँगा?

और यदि 

“हाँ” कहा तो

शायद

खुशी से मर जाऊँगा


प्यार से बढ़कर

गुनाह नहीं है

किसी भी सूरत

इसका

निबाह नहीं है


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मनीष पाण्डेय ‘मनु

लक्सम्बर्ग शनिवार 28 मई 2022

सोमवार, 9 मई 2022

एक दिन

किसने बनाया
नहीं जानता
पर साफ़ कह दूँ
मैं नहीं मानता

सिर्फ़ एक दिन
नहीं है 
दोस्ती के लिए
या प्यार का 

एक दिन का नहीं
मेरा भाई
तो है मानो
मेरी ही परछाई
या बहन 
जिसके प्यार ने
मेरी दुनिया सजाई

कोई एक दिन
नहीं था 
मेरी माँ की ममता
और 
पिता की छाया के
उपकार का 

बस एक दिन
कैसे याद करूँ 
आज़ादी के मतवालों को

या जान पर खेल
सीना तान खड़े
सीमा के रखवालों को 

एक दिन में तो
सिर्फ़ 
रस्म और रिवाज 
पूरे होते हैं

ज्यादातर ऐसे काम
आजकल अनमने
और अधूरे होते हैं

दोस्ती की गर्माहट
हर पल देती
खुशी है
वो प्यार की खुश्बु
मेरे साँसों में 
बसी है

आज भी
माँ ही 
याद आती है
जब ठोकर लगती है
और पिता 
याद आते हैं
मेरे किसी काम पर
जब ताली बजती है

हाँ! मुझे
मेरी ज़िंदगी के
हर पहलू और
हर रिश्ते से है
बहुत प्यार
किसी एक दिन नहीं
हर दिन, हर पल
हर बार
हर-एक बार

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
लक्सम्बर्ग, सोमवार 09 मई 2022

बुधवार, 4 मई 2022

उद्देश्य

उद्देश्य 
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 हे! युधिष्ठिर,
ये बताओ कि
तुमने इंद्रप्रस्थ का महल
मायावी क्यों बनवाया था? 

 कौन आने वाला था
जिसे तुम्हें
दिवार में रास्ता
और दरवाज़े पर
चित्र दिखाकर
सशंकित करना था?

वो कौन था
जिसे समतल में पानी
और पानी में
गलीचा दिखाकर
भ्रमित करना था?

भूल गए कि
घर में बूढ़ी होती
माँ भी थी? 

क्या उस घर में
दौड़-धूप करते,
ऊधम मचाते बच्चे
नहीं रहने वाले थे?

क्या तुम्हारे
कोई अपने
और सगे-सम्बंधी
आने-जाने वाले नहीं थे?

या तुम
चाहते नहीं थे
वे आएँ?

अपने राज महल में
भ्रम जाल बनाने के पीछे
तुम्हारा उद्देश्य क्या था? 

मनीष पाण्डेय
बुधवार 04-मई-2022, लक्सम्बर्ग