किसने बनाया
नहीं जानता
पर साफ़ कह दूँ
मैं नहीं मानता
सिर्फ़ एक दिन
नहीं है
दोस्ती के लिए
या प्यार का
एक दिन का नहीं
मेरा भाई
तो है मानो
मेरी ही परछाई
या बहन
जिसके प्यार ने
मेरी दुनिया सजाई
कोई एक दिन
नहीं था
मेरी माँ की ममता
और
पिता की छाया के
उपकार का
बस एक दिन
कैसे याद करूँ
आज़ादी के मतवालों को
या जान पर खेल
सीना तान खड़े
सीमा के रखवालों को
एक दिन में तो
सिर्फ़
रस्म और रिवाज
पूरे होते हैं
ज्यादातर ऐसे काम
आजकल अनमने
और अधूरे होते हैं
दोस्ती की गर्माहट
हर पल देती
खुशी है
वो प्यार की खुश्बु
मेरे साँसों में
बसी है
आज भी
माँ ही
याद आती है
जब ठोकर लगती है
और पिता
याद आते हैं
मेरे किसी काम पर
जब ताली बजती है
हाँ! मुझे
मेरी ज़िंदगी के
हर पहलू और
हर रिश्ते से है
बहुत प्यार
किसी एक दिन नहीं
हर दिन, हर पल
हर बार
हर-एक बार
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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
लक्सम्बर्ग, सोमवार 09 मई 2022
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