सोमवार, 9 मई 2022

एक दिन

किसने बनाया
नहीं जानता
पर साफ़ कह दूँ
मैं नहीं मानता

सिर्फ़ एक दिन
नहीं है 
दोस्ती के लिए
या प्यार का 

एक दिन का नहीं
मेरा भाई
तो है मानो
मेरी ही परछाई
या बहन 
जिसके प्यार ने
मेरी दुनिया सजाई

कोई एक दिन
नहीं था 
मेरी माँ की ममता
और 
पिता की छाया के
उपकार का 

बस एक दिन
कैसे याद करूँ 
आज़ादी के मतवालों को

या जान पर खेल
सीना तान खड़े
सीमा के रखवालों को 

एक दिन में तो
सिर्फ़ 
रस्म और रिवाज 
पूरे होते हैं

ज्यादातर ऐसे काम
आजकल अनमने
और अधूरे होते हैं

दोस्ती की गर्माहट
हर पल देती
खुशी है
वो प्यार की खुश्बु
मेरे साँसों में 
बसी है

आज भी
माँ ही 
याद आती है
जब ठोकर लगती है
और पिता 
याद आते हैं
मेरे किसी काम पर
जब ताली बजती है

हाँ! मुझे
मेरी ज़िंदगी के
हर पहलू और
हर रिश्ते से है
बहुत प्यार
किसी एक दिन नहीं
हर दिन, हर पल
हर बार
हर-एक बार

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
लक्सम्बर्ग, सोमवार 09 मई 2022

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