अरस्तू के लिखे
पोएटिक्स के हवाले से कहो
या कालिदास रचित
अभिज्ञान शाकुंतलम् के नाम पर
चाहे वो
कबीर के दोहे हों
या बात निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब के कलाम पर
तुलसी की चौपाई हो
या नुक्ता-चीनी हो
निराला-अज्ञेय के काम पर
बात बस इतनी सी है,
सिर्फ खुशियों और
जीत के सहारे
कहानी नहीं चलती है
ट्रेजेडी केआने से ही
ज़िदगी
मुकम्मल होती है
और एक कविता बनती है