मंगलवार, 10 अप्रैल 2001

दर्द का रिश्ता

बहुत अच्छा किया
जो तुमने
तोड़ दिया दर्द का
रिश्ता|

छुड़ा लिया दामन
मेरे नशीब के
काँटों से|

दुआयें दे रहा हूँ
के मुबारक हो तुझे
बहारों के दिन, और
जमाने की खुशियाँ|

पर ये न समझाना
के तुम्हारे बिना
मैं किसी भूले हुए
मज़ार की तरह
बिख़र जाऊँगा |

मैंने प्यार किया प्यार
और तेरी जुदाई के
तूफानों के बीच
इस प्यार का दिया
अपने खून-ए-जिगर
से जलाता रहूँगा|

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मनीष पाण्डेय "मनु"
बिलासपुर, मंगलवार १० अप्रैल २००१

बुधवार, 3 जनवरी 2001

कौन हो तुम?

कौन हो तुम?
मेरे ख्वाबों सी अपनी,
मेरे ख़यालों सी चंचल।

कौन हो तुम?
कि तुम्हारी 'यादें'
मुझे क्यों सताने लगी है?

चिढाने लगी है
क्यों ये 'हवा'
तुम्हारे नाम से?

कौन हो तुम?
कि घुल रही है
मेरे 'सांसों' में
तुम्हारी खुशबू।

समा रही है
तुम्हारे पायल
की 'छन-छन'
मेरी धड़कनों में।

कौन हो तुम?
कि बढ़ने लगी है
तुम्हारी 'चाहत'
मेरी दुआओं में।

क्यों नहीं भूलता
मैं तुम्हारी 'आखें'
जिनमें मेरी तकदीर
नजर आती है?

कौन हो तुम?
मेरे मन में बसी है
जो 'मूरत',
क्या तुम्हारी है?

क्या तुम्हीं हो?
जिसे लिखा गया है
मेरे हाथ कि लकीरों में
जन्म-जन्मांतर के लिए?

कौन हो तुम?

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मनीष पाण्डेय "मनु"
जाँजगीर (छग), बुधवार ३ जनवरी २००१