गुरुवार, 26 अक्तूबर 2017

नज़र से दूर हो के

नजर से दूर हो  के भी दिल के पास है तू
मेरे सीने में धड़के, वही अहसास है तू


रहूँ चाहे जहाँ मैं, बस तेरी जुस्तजू है
तुझे बाँहों में भर लूँ, हाँ यही आरजू है
हर घड़ी हूँ तरसता, हाँ वही प्यास है तू
नजर से दूर हो के भी दिल के पास है तू|



तुझे पाने की ख्वाहिस ही मेरी बंदगी है
तेरी चाहत के दम पर ही मेरी हर ख़ुशी है
रहे तू बनके मेरी बस यही आस है तू
नजर से दूर हो  के भी दिल के पास है तू|

मंगलवार, 17 अक्तूबर 2017

कितना प्यार करते हैं

कितना प्यार करते हैं, तुमसे ओ सनम
ये बता नहीं सकते, लफ्जों में हम 
तेरी याद दिल में है, हरपल हरदम
नाम तेरा ले के अब तो, जी ते हैं हम
कितना प्यार करते हैं... 

तेरा नाम ले कोई तो, सांसे रुके 
तेरे जिक्र से ही मेरी, नजरें झुके
तू ही बस तू ही है, हर-सूं  हरदम 
कितना प्यार करते हैं...


तू जो रूठ जाये तो, रूठे खुदा
जी नहीं पाएंगे अब, होके जुदा   
बस तेरे खयालो में, डूबे हैं हम 
कितना प्यार करते हैं... 

तेरा साथ हो तो हम, जहाँ जीत लें 
आजा मेरी बाँहों में, तू लग जा गले
तू ही मेरे दिल में है ओ मेरे हमदम 
कितना प्यार करते हैं तुमसे ओ सनम 

गुरुवार, 20 जुलाई 2017

तेरा इन्तजार

मैं जानता हूँ कोई नहीं
                 आ रहा फिर भी,
जाने क्यों देखता हूँ
                 मुड़-मुड़ के बार-बार |

एक हूक सी उठती है
                 हर साँस में मेरी,
दिल जोर से धड़के है,
                 मेरा होके बेकरार |

कभी जोर से धड़के है
                 कभी बैठ सा जाये,
दीवानगी पे दिल के-
                 नहीं मेरा इख़्तियार |

तुझे पा नहीं सकता हूँ
                 मुझे इसका इल्म है,
तुझे चाहते रहने का
                 तो हक़ है हजार बार |

आहट हुयी कहीं तो-
                 लगता है के तुम हो,
अब हर साँस में मेरे
                 है बस तेरा इन्तजार |

सोमवार, 17 जुलाई 2017

पता पूछते हमारा, शहर में ये कौन आया?

टूटे अरमानों के तेज भँवर में ये कौन आया,
पुरानी यादों के फूटे खँडहर में ये कौन आया?
जमाना तो क्या, हम थे खुद को भूल बैठे,
पता पूछते हमारा, शहर में ये कौन आया?

होके जार-जार हम तो कब के मिट चुके हैं,
होके तार-तार सभी अरमां बिखर चुके हैं |
आइना भी हमको पहचानता नहीं अब,
खुदा जाने ऐसे मंजर में ये कौन आया?
पता पूछते हमारा, शहर में ये कौन आया?

हर तरफ अँधेरा सा फैला है जिंदगी में,
अपनी ही परछाई नहीं साथ में हमारे |
सूरज की रौशनी भी आती नहीं यहाँ अब,
जुगनू सी चमक लेके इधर में ये कौन आया?
पता पूछते हमारा, शहर में ये कौन आया?

सदियां गुजरती थी लम्हो में साथ उनके,
कभी गोद के सिरहाने, कभी आँचल में छुपके |
बड़ी लम्बी कहानी है मुहौब्बत की बातें,
दास्ताँ सुनाते मुख़्तसर में ये कौन आया?
पता पूछते हमारा, शहर में ये कौन आया?