रविवार, 18 दिसंबर 2022

हार-जीत

जो जीत गया वो जीत गया 
जो हार गया वो हार गया 
बाजीगर वो कहलाता है 
जो अपनी बाजी मार गया 

जो जीता उसको सब सुनते 
उनके ही किस्से सब बुनते 
दुनिया का बस दस्तूर यही 
जीता है उसको सब चुनते 

जो हार गया वो छूट गया 
मानो किस्मत भी रूठ गया 
कितने उद्यम करके आये  
उसका कसाव सब टूट गया 

इस हार-जीत के खेले में 
गम और खुशी के मेले में 
जो जीते हैं या हारे हैं 
दोनों ही पड़े झमेले में 

वो जीत अगर सर चढ़ जाए 
तो अहम् भाव भी बढ़ जाए 
दीमक लग जाए कौशल पर 
फिर कदम पतन को बढ़ जाए 

चाहे उड़कर नभ को छू लो 
तारों के बीच चमक झूलो 
पर ठौर ठिकाना धरती पर 
यह बात कभी ना तुम भूलो 

गिरने से हार नहीं होती 
बिन तपे निखार नहीं होती 
पत्थर से मूरत ना बनती 
जो छेनी मार नहीं होती 

जो एक हार से टूट गया 
वो नहीं रचे इतिहास नया 
ये हार-जीत होते रहते
तुम उठो चलो फिर दांव नया 

जो हार मिली स्वीकार करो 
पर गलती का उपचार करो 
कुछ दांव नए सीखो पक्के 
फिर जीत नया अभिसार करो 


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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
अलमेर, नेदरलॅंड्स, रविवार १८-दिसम्बर-2022

बुधवार, 23 नवंबर 2022

नैना तेरी राह में

बैठे बिछाये हुए, नैना तेरी राह में साँसें मेरी चल रही, हमदम तेरी चाह में

तुझ से जो नेहा लगी, हम तो दीवाने हुए दुनिया की है ना खबर, सबसे बेगाने हुए हरपल मेरा दिल कहे, ले लूँ तुझे बाँह में

बहती हवाओं में तू, फूलों की खुशबू लगे सावन की झड़ियों से, अरमां सुलगने लगे बागों बहारों में भी, तुम ही मेरी निगाह में

------------------------------------------------- मनीष पाण्डेय ‘मनु’ अलमेर, नेदरलॅंड्स, बुधवार 23-नवंबर-2022

रविवार, 20 नवंबर 2022

राजा सोया महलों में

राजा सोया महलों में सत्ता का सुख भोग रहा खोये सपन रूपहलों में

दर-दर भटक रही जनता मनमानी का आलम है बात नहीं कोई सुनता

ऊपर से आया फरमान बंद हुए सब दरवाजे बदल गया सबका ईमान

चाहे जाए कितनी जान उनको चेहरा चमकाना है देश हमारा बड़ा महान

यूँ विकास का काम किए हैं एंडरसन फिर भाग गया चार जमुरे पकड़ लिए हैं

मंदिर-मस्जिद बनवाते हैं रोटी कपड़ा और मकान ये तो सब छोटी बातें है

------------------------------------------------- मनीष पाण्डेय ‘मनु’ अलमेर, नेदरलॅंड्स, रविवार 20-नवंबर-2022

बुधवार, 16 नवंबर 2022

दोहरी जिन्दगी

बहुत से लोग इस दुनिया में दोहरी जिन्दगी जीते है

एक जो उसे जीना पड़ता है दूसरा जिसे वो जीना चाहता है

इन दो पाटों के बीच जो फँस गया उसकी खैर नहीं

जिसे जी रहा है उसे जी पाता नहीं है जिसे जीना चाहता है वह हासिल नहीं है

बदहवासी इस उलझन की उसे कहीं का नहीं छोड़ती

बस एक तरीका है इस मिराज से छूटने का

सच का सामना!

दिक्कत इस बात की है
कि सच को
देख तो सभी सकते हैं
पर मानता कोई नहीं 

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
अलमेर, नेदरलॅंड्स, बुधवार 16-नवंबर-2022

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2022

पहला प्यार

ठण्डे पानी की सतह से उठते कुहासे की तरह

नदी की धार में उठते उफ़ानों की तरह

पत्तों की ओट से लुढ़कते ओस की तरह

पहली बारिस में धरती की महकती सोंधी खुशबू की तरह

पलाश के जंगलों में चटकती कलियों की तरह

रात रानी के पौधे नीचे झड़े फूलों की तरह

मोगरे के गुच्छों से उड़ती खुशबू की तरह

झरनों के कलकल से बजते संगीत की तरह

होती है दिल में दस्तक पहले प्यार की

------------------------------------------------- मनीष पाण्डेय ‘मनु’ अलमेर, नेदरलॅंड्स, रविवार १८-अक्टूबर-2022

रविवार, 16 अक्तूबर 2022

हौसला

एक मसला हल हुआ तो दूसरा है सामने, देख फिर भी हौसले का हाथ रखना थाम के

लाख दीवारें उठें पत्थर-पहाड़ों से बनी, चीर सीना पत्थरों का राह कर लेती नदी मुश्किलें कितनी खड़ी हों आज तेरे राह में देख फिर भी हौसले का हाथ रखना थाम के

हो भले कितनी भयावह कालिमा अंधियार की पर उसे है मात देती एक छोटी लौ कहीं इन अंधेरे में कहीं जब खो गए हों रास्ते देख फिर भी हौसले का हाथ रखना थाम के


मुश्किलें आती रहें आँधी-तूफ़ानों की तरह, तू मगर डिगना नहीं ऊँचे पहाड़ों की तरह उलझनों की बोझ में जब पाँव थम जाने लगे देख फिर भी हौसले का हाथ रखना थाम के

हारने और जीतने का होड़ है ये ज़िंदगी हार के भी फिर खड़ा हो है उसी की ज़िंदगी हारने का दर्द जब उत्साह को खाने लगे देख फिर भी हौसले का हाथ रखना थाम के

कौन है जिसने यहाँ सन्ताप को झेला नहीं डूब कर उसमें मगर तुम भूल सब जाना नहीं टूटकर जब दर्द से ये दिल बिखर जाने लगे देख फिर भी हौसले का हाथ रखना थाम के

राह रोकी पत्थरों ने, धार उसकी बाँट दी निर्झरों की चाल में संगीत पर उसने भरी जब कभी राहों के रोड़े, राह भटकाने लगे देख फिर भी हौसले का हाथ रखना थाम के

बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

दशहरा

दशहरा


खबर आयी है 
कई शहरों में 
रावण का पुतला
राम के आने से पहले ही
जल गया

लगता है शायद 
रावण का पुतला भी
जल्दी से रश्में पूरी कर
मेला घूमने को मचल गया 


राम लीला खेलना 
और दुर्गा पूजा के बाद
मेला सजाना 

उसे भी है मालूम
बस एक परम्परा है 
ये जलना-जलाना

असत्य पर सत्य और
बुराई पर अच्छाई के 
जीत का 
ढोल बजता है

शोर सराबे के बीच
सच और अच्छाई क्या है 
इसे सोचने का 
वक्त कहाँ बचता है 

बहुत आसान है 
उसकी बुराईयाँ गिन
पुतले बनाकर
उसे हर साल जलाना 

रावण बुरा था ये ठीक
लेकिन एक बार 
ख़ुद को भी
आईने में देख आना 

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
अलमेर, नेदरलॅंड्स, बुधवार 05-अक्टूबर -2022

शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

तेरी चाह में

बैठे हैं हम बिछाये, नैना तेरी राह में
साँसें मेरी चल रही, हमदम तेरी चाह में 

तुझ से जो नेहा लगी, हम तो दीवाने हुए
दुनिया की है ना खबर, सबसे बेगाने हुए
हरपल मेरा दिल कहे, ले लूँ तुझे बाँह में

बहती हवाओं में तू, फूलों की खुशबू लगे
सावन की झाड़ियों से, अरमां सुलगने लगे
बागों बहारों में भी, तुम ही मेरी निगाह में

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
अलमेर, नेदरलॅंड्स, 30-सितम्बर-2022

शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

सरकार तो बना लो

सरकार तो बना लो 

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नाथ या अनाथ हो

दिन हो या रात हो

नाग-नाथ को, 

साँप-नाथ को 

जो आ जाए मिला लो

चलो सरकार तो बना लो


कल तक विरोधी था

लगता बड़ा क्रोधी था 

किसी बात पे अड़ गया है

अकेला पड़ गया है 

देखो! हो सके तो इधर बुला लो

चलो सरकार तो बना लो


आगे की सीट हो

पीछे की पीठ हो

सीधा या ढीठ हो 

खारा या मीठ हो

जैसे बने वैसे, काम चला लो

चलो सरकार तो बना लो


जनता की बात नहीं

रहता कुछ याद नहीं 

होशियार ना बेवक़ूफ हैं

सब अपने में मसरूफ हैं 

कोई भी अच्छा सा जुमला निकालो

चलो सरकार तो बना लो


चार दिन की चाँदनी

आदर्श में क्यों काटनी

मौका गँवाना क्यों 

बाद में पछताना क्यों 

मौका मिला है तो फायदा उठा लो

चलो सरकार तो बना लो


कुछ नहीं टिकता है

ईमान भी बिकता है

घर की जागीर है

आदमी का तो जमीर है 

उधर जगा के इधर सुला लो

चलो सरकार तो बना लो


कौन यहाँ सच्चा है

जैसा है अच्छा है 

हटाओ, मुद्दों को छोड़ो

पहले आँकड़े तो जोड़ो

देख लो थोड़ा हिसाब से लगा लो

चलो सरकार तो बना लो


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मनीष पाण्डेय ‘मनु’

लक्सम्बर्ग शुक्रवार 01-जुलाई-2022

बदल रहा है देश

 बदल रहा है देश
सम्हल रहा है देश
बदलने परम्परा
मचल रहा है देश

राजतंत्र तो गया
लोकतंत्र हो गया
सही रूप में मगर
अब पकड़ रहे डगर
जाल से सामंतों के 
निकल रहा है देश… 

नेता जी कौन हैं
भैया जी कौन हैं
बाप की नहीं रही
गद्दी या सर जमी
नये चेहरे तराशने
उछल रहा है देश… 

बड़े बड़े सूरमा
बन रहे चूरमा
जमीन से जुड़े हुए
आज वो खड़े हुए
वोट की ताकत से
अब चल रहा है देश… 

जागो अब नींद से
पसीने की बूँद से
नींव अब नई रखो
नई राह बढ़ चलो
मेहनत के बूते ही
प्रबल रहा है देश… 

मंगलवार, 14 जून 2022

जिन्दगी

 जिन्दगी
तू भी अजब,
कभी धूप
कभी छाँव है

कभी खुशियों का
गुलदस्ता
तो कभी
बारूदी सुरँग में
पड़ा जैसे पाँव है

कभी बच्चे की 
हंसी ठठोली
और खिलखिलाहट

तो कभी
बिना वजह
बेचैनी, चिंता
या छटपटाहट

कभी मौज
और मस्ती करे
यारों के संग

कभी तन्हाई
और उदासी में
हो जाए बदरंग

कभी अपनों ने
पीठ में 
ख़ंजर चलाया

तो गैरों ने
थाम कर
गिरने से बचाया

हँसते-हँसते
आँखो में
भर जाता है पानी

फिर भी 
दुःखों के सागर में
आस्था की कहानी

जितना भींचो
उतनी 
सरकती जाय

लेकिन
खुलकर जीयो
तो महकती जाये

वाह री ज़िंदगी
तेरे ढब हैं
निराले

कब साथ छोड़े
या किस से
निभाले

सुन!
तेरा हर रूप-रंग
मुझे दिल से
है स्वीकार

ओ! जिन्दगी
हर हाल में 
तेरा साथ निभाने
आजा,
मैं हूँ तैयार

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
लक्सम्बर्ग, बुधवार 14 मई 2022

शनिवार, 4 जून 2022

बेवकूफ

दुनिया में 
सबसे बड़ी बेवकूफी है
समझदार होना
उनके हिस्से आता है
सोचना-समझना
पहचाना-बोलना
तड़पना और भुगतना

दुनिया में 
सबसे बड़ी कमजोरी है
मजबूत होना
उनके हिस्से आता है
देखना-करना
सम्भालना-सहेजना
संवारना और सुधारना

दुनिया में सबसे बड़ा दुःख है
सहनशील होना
उनके हिस्से आता है
पीना-गटकना
त्यागना-भोगना
सहना और झेलना

वे लोग
ना कुर्सी पर बिठाए जाते हैं
ना पगड़ी बँधाए जाते हैं
ना दुलारे जाते हैं
ना सिर चढ़ाए जाते हैं

धर दिया जाता है
दो जहाँ का बोझ
काँधे उनके
और खड़ा कर दिया जाता
धूप-बरसात में
ऐटलस की तरह
नंगा करके 

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
लक्सम्बर्ग शनिवार 4 जून 2022


शनिवार, 28 मई 2022

मैं कौन हूँ?

 मैं कौन हूँ?

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उसमें बसी है

मेरी जान

किसी तोते की तरह


मैं चाहता हूँ

छुपाकर रखना

उसे दुनिया की नजर से


मेरे सिवा कोई और

उसे देख ना सके

छू ना सके 


गर वो तोता है

तो फिर 

मैं कौन हूँ?

प्रेम राक्षस!!


मनीष पाण्डेय ‘मनु

लक्सम्बर्ग शनिवार 28 मई 2022

गुनाह

घण्टों बातें
करती है
मिलने आती है
जब भी पूछा
दिल का हाल तो 
हँसके टाल जाती है


साथ है

पर साथ नहीं

उससे बुरी

कोई बात नहीं

ना मिले उसका प्यार

तो उससे बदतर

हालात नहीं


क्या सितम है

मेरा होके भी

वो मेरा  हुआ

सुलग रहे हैं हम

और ज़िंदगी हो गई

धुआँ-धुआँ


ना बेवफा है

और ना ही

सितमगर है

लेकिन 

उसका प्यार

एक भरम भर है 


इससे अच्छा तो 

कह दे साफ

कोई नाता नहीं

इस तरह घुट-घुट

अब और

जिया जाता नहीं


लेकिन डरता हूँ

उसने “ना” कहा तो

क्या जी पाऊँगा?

और यदि 

“हाँ” कहा तो

शायद

खुशी से मर जाऊँगा


प्यार से बढ़कर

गुनाह नहीं है

किसी भी सूरत

इसका

निबाह नहीं है


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मनीष पाण्डेय ‘मनु

लक्सम्बर्ग शनिवार 28 मई 2022

सोमवार, 9 मई 2022

एक दिन

किसने बनाया
नहीं जानता
पर साफ़ कह दूँ
मैं नहीं मानता

सिर्फ़ एक दिन
नहीं है 
दोस्ती के लिए
या प्यार का 

एक दिन का नहीं
मेरा भाई
तो है मानो
मेरी ही परछाई
या बहन 
जिसके प्यार ने
मेरी दुनिया सजाई

कोई एक दिन
नहीं था 
मेरी माँ की ममता
और 
पिता की छाया के
उपकार का 

बस एक दिन
कैसे याद करूँ 
आज़ादी के मतवालों को

या जान पर खेल
सीना तान खड़े
सीमा के रखवालों को 

एक दिन में तो
सिर्फ़ 
रस्म और रिवाज 
पूरे होते हैं

ज्यादातर ऐसे काम
आजकल अनमने
और अधूरे होते हैं

दोस्ती की गर्माहट
हर पल देती
खुशी है
वो प्यार की खुश्बु
मेरे साँसों में 
बसी है

आज भी
माँ ही 
याद आती है
जब ठोकर लगती है
और पिता 
याद आते हैं
मेरे किसी काम पर
जब ताली बजती है

हाँ! मुझे
मेरी ज़िंदगी के
हर पहलू और
हर रिश्ते से है
बहुत प्यार
किसी एक दिन नहीं
हर दिन, हर पल
हर बार
हर-एक बार

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
लक्सम्बर्ग, सोमवार 09 मई 2022

बुधवार, 4 मई 2022

उद्देश्य

उद्देश्य 
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 हे! युधिष्ठिर,
ये बताओ कि
तुमने इंद्रप्रस्थ का महल
मायावी क्यों बनवाया था? 

 कौन आने वाला था
जिसे तुम्हें
दिवार में रास्ता
और दरवाज़े पर
चित्र दिखाकर
सशंकित करना था?

वो कौन था
जिसे समतल में पानी
और पानी में
गलीचा दिखाकर
भ्रमित करना था?

भूल गए कि
घर में बूढ़ी होती
माँ भी थी? 

क्या उस घर में
दौड़-धूप करते,
ऊधम मचाते बच्चे
नहीं रहने वाले थे?

क्या तुम्हारे
कोई अपने
और सगे-सम्बंधी
आने-जाने वाले नहीं थे?

या तुम
चाहते नहीं थे
वे आएँ?

अपने राज महल में
भ्रम जाल बनाने के पीछे
तुम्हारा उद्देश्य क्या था? 

मनीष पाण्डेय
बुधवार 04-मई-2022, लक्सम्बर्ग

मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

दूरियाँ

 दूरियाँ

नज़दीकियों ने दूरियाँ बढ़ाई है बड़ गई मतभेद की गहराई है


पड़ रही आवाज़ मेरे कानों पे कुछ मगर देता नहीं सुनाई है


नाम ले उसने मुझे पुकारा पर आँख में दिखती अलग परछाई है


रात के अँधियार से डरता है वो हर चिराग़ जिसने खुद बुझाई है

छत के दरकने की बात कौन करे रिश्तों में ही जब दरार आयी है

चाहता है दिल उसे पुकारूँ मैं

दम्भ ने आवाज़ पर चुराई है

क्या कहें? किसको कहाँ कैसे कहें? हमने अपनी फस्ल खुद जलाई है

दीवारों पर जो दरार तुमने देखी हाँ वही अब रिश्तों की सच्चाई है

कौन सच्चा कौन झूठा क्या पता सबने अपनी अपनी कथा बनाई है


मनीष पाण्डेय “मनु” लक्सेम्बर्ग ,मंगलवार 19-अप्रैल 2022

शुक्रवार, 18 मार्च 2022

कैसे मनाऊँ होली

 कैसे मनाऊँ होली, कैसे मनाऊँ होली


छूटी वो गलियां, वो रस्ते चौबारे 

यारों के संग, जहाँ फिरते थे सारे 

जितना था हासिल, बहुत जान पड़ता 

फाके के दिन भी, मजे से गुजारे  


लड़कपन की मस्ती, ना यारों की टोली 

होती नहीं अब, हँसी ना ठिठोली

कैसे मनाऊँ होली, कैसे मनाऊँ होली


मनीष पाण्डेय “मनु” लक्सेम्बर्ग,शुक्रवार 18-मार्च 2022

सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

एलईडी बल्ब

बिलकुल 

एलईडी बल्ब

की तरह हो तुम


आँखें चौंधिया देने वाली

और रंग बिरंगी 

झिलमिलाहट वाली 


और तो और

एलईडी की तरह ही

असर भी करती हो

दिल दिमाग पर

ना रातों में नींद आती है

और ना दिन में चैन


फर्क बस इतना है कि

एलईडी बल्ब की तरह

तुम्हारा मेटेनैंन्स

किफायती नहीं है 


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मनीष पाण्डेय “मनु”
लक्सेम्बर्ग, सोमवार 28-फरवरी-2022 

रविवार, 27 फ़रवरी 2022

मुस्कान

मुस्कान


मैंने देखी है 

पेरिस के म्यूजियम में लगी 

मोनालिसा की तस्वीर 

जिसकी मुस्कुराहट के चर्चे

सारी दुनिया में है 


मुझे नहीं पता वो 

क्यों मुस्कुरा रही है 

लेकिन उसके मुस्कान 

मुझे फीकी लगी 


उस मुस्कान के सामने 

जो मजदूर को 

उसकी दिहाड़ी मिलने पर 


जो उस सब्जी वाले  

के चेहरे पर थी 

जब शाम को बाजार उठाते 

उसने अपने पैसे गिने 


जो देखे हैं 

अपने गाँव में  

बच्चों के चेहरे पर 

किसी के पुराने

खिलौने पाकर 


उस बच्ची के चेहरे में 

जिसे स्कूल जाने के लिए 

उसके पिता ने 

खरीद कर दी है 

एक पुरानी साइकल


बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

बदल प्यारे

बदल प्यारे

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दुनिया बहुत बदली तू भी थोड़ा बदल प्यारे 

हर कदम पर धोखा है देख जरा सम्हल प्यारे 

मायूस मत होना, अपने हालात के कारण 

कीचड़ में भी खिलता है फूल वो कमल प्यारे 

रास्ते बन ही जाएंगे, ठान ले अगर जब 

खुद की बाजुओं के दम पर ही तू निकल प्यारे 

खुद कर कुछ ऐसा की तेरी पहचान जुदा हो 

बेकार में मत कर किसी और की नकल प्यारे 

खुशियाँ और गम आते जाते हैं जिंदगी में  थोड़ी सी सफलता पर इतना मत उछल प्यारे

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मनीष पाण्डेय “मनु” लक्सेम्बर्ग, बुधवार 23 फरवरी 2022

सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

बात

बात ----------------------------------

पूरी बात भी हर बात की, बताता नहीं कोई अपनी गलती किसी बात पे, जताता नहीं कोई 

शायद लगी हो ठेस, किसी पहले की बात से

बिन बात ऐसे ही, दो बात सुनाता नहीं कोई 


निकल आयी होगी तुमसे, गरज किसी बात की

बे मतलब किसी को, प्यार से बुलाता नहीं कोई 


बातों से खानदानी, वो लगता है आदमी

किसी से यूँ ही अदब से, पेश आता नहीं कोई 


सर्दियों की फिक्र होगी, मन में उसके शायद 

वर्ना दरख्त इतने, फिजूल लगाता नहीं कोई


आदमी वो भीतर ही, बड़ा ख़ुशमिज़ाज होगा 

यूँ ही  किसी की बात पे, मुस्कुराता नहीं कोई


---------------------------------- मनीष पाण्डेय “मनु” लक्सेम्बर्ग, मंगलवार 21 फरवरी 2022

सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

सच्चा-झूठा

सच्चा-झूठा

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माना कि जो दिखता है  वही बिकता है 


लेकिन 

यह जरूरी नहीं

जिसे मोल लेकर आये 

वही हो जो  

दिखाया गया था


आँखों देखी 

और कानों सुनी बात भी  

गलत हो सकते हैं


आँखों देखी के भरोसे ही 

दुर्योधन पानी में जा गिरा

और भारत भूमि 

खून से नहा गयी 



और कभी 

कानों सुनी के कारण ही 

राम राज में भी 

सीता ने वनवास भोगा


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मनीष पाण्डेय “मनु” लक्सेम्बर्ग ,मंगलवार 14 फरवरी 2022

रविवार, 13 फ़रवरी 2022

पहेली

पहेली

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हर भेद मन के जानती 

सुख-दुख की मेरी साथी 

भावना मेरी समझती 

एक वो सच्ची सहेली 

भाव देकर व्यक्त करती 

चित्त की हर इक व्यथा को   

या कभी आलम्ब देती  

थाम कर मेरी हथेली

जब दुखों का ताप बढ़ता 

आस की बरखा बने वो 

या मरीची कभी बनकर 

छाँट देती है कुहेली

आप ही बनती चले वो 

या कभी बिलकुल न बूझे  

छोटी बच्ची के जैसे 

करती रहती अठखेली 

क्या लिख रहा हूँ मैं उसे

या वह मुझे है लिख रही?

ना समझ पाया अभी तक  ये कविता है कि पहेली


---------------------------------- मनीष पाण्डेय “मनु” लक्सेम्बर्ग,सोमवार 13 फरवरी 2022

शनिवार, 12 फ़रवरी 2022

समझो बसंत आया

जाड़े की ठिठुरन अब जाने लगी है  हरी-भरी धरती भी इतराने लगी है  माघी के मेले में यारों ने मिलने बुलाया  समझो बसंत आया, समझो बसंत आया

खेतों में तिलहन और मेढ़ों पे दलहन

सरसों की पिंवरि में धरती है दुल्हन

गन्ने के खेतों में भालू ने डेरा जमाया

समझो बसंत आया, समझो बसंत आया


टेसुओं की खुशबू भरने लगी हवा में 

सिंदूरी की मस्ती छाने लगी फिजा में 

जब अमिया की डाली पे बौर लहराया 

समझो बसंत आया, समझो बसंत आया


बाड़े में इमली और बेरी पकने लगे हैं 

कच्ची कैरी के घेर अब लटकने लगे हैं 

गिलहरी ने अमरूद पर उत्पात मचाया

समझो बसंत आया, समझो बसंत आया


कोयल की कुहू से गूंजे है उपवन 

महुए के फूलों से बहका सा तन-मन 

बगिया में भौरों का झुण्ड मंडराया 

समझो बसंत आया, समझो बसंत आया


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मनीष पाण्डेय “मनु” लक्सेम्बर्ग ,शनिवार 12 फरवरी 2022

सोमवार, 24 जनवरी 2022

ट्रेजेडी

ट्रेजेडी
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चाहे तुम

अरस्तू के लिखे 

पोएटिक्स के हवाले से कहो

या कालिदास रचित

अभिज्ञान शाकुंतलम्  के नाम पर


चाहे वो

कबीर के दोहे हों

या बात निकले 

मिर्ज़ा ग़ालिब के कलाम पर 


तुलसी की चौपाई हो

या नुक्ता-चीनी हो 

निराला-अज्ञेय के काम पर 


बात बस इतनी सी है,

सिर्फ खुशियों और 

जीत के सहारे 

कहानी नहीं चलती है 


ट्रेजेडी केआने से ही 

ज़िदगी 

मुकम्मल होती है 

और एक कविता बनती है


---------------------------------- मनीष पाण्डेय “मनु” लक्सेम्बर्ग, मंगलवार 24 वरी 2022