दूरियाँ
नज़दीकियों ने दूरियाँ बढ़ाई है बड़ गई मतभेद की गहराई है
पड़ रही आवाज़ मेरे कानों पे कुछ मगर देता नहीं सुनाई है
नाम ले उसने मुझे पुकारा पर आँख में दिखती अलग परछाई है
रात के अँधियार से डरता है वो हर चिराग़ जिसने खुद बुझाई है
छत के दरकने की बात कौन करे रिश्तों में ही जब दरार आयी है
चाहता है दिल उसे पुकारूँ मैं
दम्भ ने आवाज़ पर चुराई है
क्या कहें? किसको कहाँ कैसे कहें? हमने अपनी फस्ल खुद जलाई है
दीवारों पर जो दरार तुमने देखी हाँ वही अब रिश्तों की सच्चाई है
कौन सच्चा कौन झूठा क्या पता सबने अपनी अपनी कथा बनाई है
मनीष पाण्डेय “मनु” लक्सेम्बर्ग ,मंगलवार 19-अप्रैल 2022