मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

दूरियाँ

 दूरियाँ

नज़दीकियों ने दूरियाँ बढ़ाई है बड़ गई मतभेद की गहराई है


पड़ रही आवाज़ मेरे कानों पे कुछ मगर देता नहीं सुनाई है


नाम ले उसने मुझे पुकारा पर आँख में दिखती अलग परछाई है


रात के अँधियार से डरता है वो हर चिराग़ जिसने खुद बुझाई है

छत के दरकने की बात कौन करे रिश्तों में ही जब दरार आयी है

चाहता है दिल उसे पुकारूँ मैं

दम्भ ने आवाज़ पर चुराई है

क्या कहें? किसको कहाँ कैसे कहें? हमने अपनी फस्ल खुद जलाई है

दीवारों पर जो दरार तुमने देखी हाँ वही अब रिश्तों की सच्चाई है

कौन सच्चा कौन झूठा क्या पता सबने अपनी अपनी कथा बनाई है


मनीष पाण्डेय “मनु” लक्सेम्बर्ग ,मंगलवार 19-अप्रैल 2022