गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

साझा

सूरज 

भले ही साझा हो

पर अपने हिस्से की धूप

अपने-अपने चेहरे पर 

खुद ही लेनी होती है


कुँआ 

भले ही साझा हो

पर अपने हिस्से की प्यास

अपने-अपने होठों से

खुद ही बुझानी होती है


डगर

भले ही साझा हो

पर अपने हिस्से की मंजिल

अपने-अपने कदमों से

खुद ही चलकर पानी होती है


मौके 

भले ही साझा हो

पर अपने हिस्से की किस्मत

अपने-अपने कामों से

खुद ही गढ़नी होती है


आसमान

भले ही साझा हो

पर अपने हिस्से की उड़ान

अपने-अपने पंखों के सहारे

खुद ही भरनी होती है


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मनीष पाण्डेय ‘मनु’

नीदरलैंड, गुरुवार 23 फरवरी 2023

 

शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

जिन्दगी

 अभिमान और 

क्षोभ के दो ऊँचे 

पहाड़ों के बीच की

गहरी और अंधेरी 

खाई का नाम है जिन्दगी


हर्ष और विषाद,

राग और द्वेष

इन्हीं दो पहाड़ों की

कुछ चोटियाँ हैं


कभी जरा कुछ 

अच्छा हुआ नहीं कि

चढ़ जाता है 

अभिमान के शिखर पर


और भूल-चूक इतने 

कि उनके 

क्षोभ की ऊँचाई 

सूरज को भी

ढाँपने लगे 


कभी ऊर्जा से भरा

इस चोटी चढ़ता

तो कभी 

बदहवास हो कर

उस चोटी में जाता


इन दो पहाड़ों की

चोटियों पर

चढ़ने और फिसलने के 

निरन्तर खेल में

फँसा है आदमी


जो समझ जाते हैं

इस तिलिस्म को

उन्हें ही मिलता है

इस होड़ से 

निकलने का रास्ता


जो इन दो पहाड़ों की 

चोटियों से नहीं

उसी खाई की 

तलहटी से जाता है


और मिलता है

संतोष और विश्वास रूपी

प्रकाश के साथ

अंदर खोजने से 


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मनीष पाण्डेय ‘मनु

नीदरलैंडशनिवार 18 फरवरी 2023

शनिवार, 11 फ़रवरी 2023

लिखना जारी है - राहुल जी

 वे ऐसे लिखते हैं 

जैसे लिखना

रोजमर्रा का हिस्सा हो


बातें इतनी है उनके पास 

मानो जिन्दगी ही

एक किस्सा हो


पढ़के ही 

दिल में उतरे ऐसी

सीधी सरल भाषा है


कड़वी सच्चाई कहे

और दिखाती आईना

नहीं कोई तमाशा है 


कोई विषय नहीं

जो उनकी नजर से

छूट जाते हैं


कविता ही नहीं

कहानी, संस्मरण या

गानों की पैरोडी बनाते हैं


एक जुनून सा है

हिन्दी भाषा  और

देवनागरी से उनका प्यार


जरा चूके नहीं कि

किसी को भी

लगा देते हैं फटकार


किताब नहीं छपी

पर पाठ्यपुस्तक में

छप गए 


इनकी इतवारी पहेली

और वर्डल में

अच्छे-अच्छे नप गए


पुरस्कार की चाह नहीं

पहचान की 

नहीं रखते आस


लिखने से है प्यार

और अपने कलम पर

रखते विश्वास


सहनशीलता बहुत है

लेकिन नहीं सहते

दिखावा बेकार का


बैरागी जैसा

निकल पड़ते कहीं भी

नहीं परवाह संसार का


ऐसा भी कोई 

होता है आदमी

आज के जमाने में


ताला नहीं लगाते

खुश होते हैं

सब को घर बुलाने में


सर पे बाल हैं कम

और इकहरा सा

बदन है 


सुलझे विचार हैं 

और सादा उनका

रहन सहन है 


फिल्में पसंद है

और बच्चों जैसा 

उत्साह फोटो खिंचाने में


कोई आया तो

बड़ा मजा आता है

उन्हें आस-पास घुमाने में


जो उन्हें नहीं जानते

चिढ़ते हैं उनसे

या डर जाते हैं


जो जानते हैं 

वो भी कहाँ ठीक से

समझ पाते हैं 


बहुत बाकी है 

अभी ये कहानी

लिखना जारी है


राहुल जी

आपसे मिलना 

खुश नसीबी हमारी है


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मनीष पाण्डेय ‘मनु’

हॉलैंड, शनिवार 11-फरवरी-2023

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2023

प्रेम

प्रेम 
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प्रेम क्या है बतायें तो कैसा भला

प्रेम के रंग रूपों, की अनगिन छटा 


प्रेम पूजा है, चाहत है, या बस ललक

प्रेम सीने में, उठती हुई इक कसक 

प्रेम मिलने, बिछड़ने की है इक कड़ी

प्रेम सदियों से लम्बी करे एक घड़ी  

प्रेम जो ना किया, तो जिया ही नहीं 

प्रेम केवल अभागे को होता नहीं 


प्रेम जिनको मिला, वो बड़े भाग से

प्रेम जिनका अधूरा, वे वैराग से

प्रेम ही इस धरा को, सजाये रखे

प्रेम ही मन में, हलचल मचाये रखे  

प्रेम ने कह दो किसको छुआ ही नहीं 

प्रेम के बिन, कहीं कुछ धरा ही नहीं


प्रेम केवल लड़कपन की बाजी नहीं 

प्रेम जीवन के हर चीज से है जुडी 

प्रेम भाई करे तो बहन लाड़ली 

प्रेम करती है बहना तो राखी बनी 

प्रेम करती है अम्मा भले ना कही 

प्रेम बाबा की रहती सदा अनकही 


प्रेम ने सबको है, अपने वस में लिया  

प्रेम सरवन ने, माँ-बाप से था किया

प्रेम के ही लिए, सिंधु बांधा गया 

प्रेम करने को मीरा, ने विष भी पिया

प्रेम है जो किया तो समपर्ण करो 

प्रेम को अपना सर्वस्व अपर्ण करो 

प्रेम मोहन का पूरा हुआ ही नहीं

प्रेमी उनसे बड़ा पर नहीं है कहीं 


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मनीष पाण्डेय “मनु”
नेदरलॅंड्स, गुरुवार 9 फरवरी 2022