अभिमान और
क्षोभ के दो ऊँचे
पहाड़ों के बीच की
गहरी और अंधेरी
खाई का नाम है जिन्दगी
हर्ष और विषाद,
राग और द्वेष
इन्हीं दो पहाड़ों की
कुछ चोटियाँ हैं
कभी जरा कुछ
अच्छा हुआ नहीं कि
चढ़ जाता है
अभिमान के शिखर पर
और भूल-चूक इतने
कि उनके
क्षोभ की ऊँचाई
सूरज को भी
ढाँपने लगे
कभी ऊर्जा से भरा
इस चोटी चढ़ता
तो कभी
बदहवास हो कर
उस चोटी में जाता
इन दो पहाड़ों की
चोटियों पर
चढ़ने और फिसलने के
निरन्तर खेल में
फँसा है आदमी
जो समझ जाते हैं
इस तिलिस्म को
उन्हें ही मिलता है
इस होड़ से
निकलने का रास्ता
जो इन दो पहाड़ों की
चोटियों से नहीं
उसी खाई की
तलहटी से जाता है
और मिलता है
संतोष और विश्वास रूपी
प्रकाश के साथ
अंदर खोजने से
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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
नीदरलैंड, शनिवार 18 फरवरी 2023
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