वे ऐसे लिखते हैं
जैसे लिखना
रोजमर्रा का हिस्सा हो
बातें इतनी है उनके पास
मानो जिन्दगी ही
एक किस्सा हो
पढ़के ही
दिल में उतरे ऐसी
सीधी सरल भाषा है
कड़वी सच्चाई कहे
और दिखाती आईना
नहीं कोई तमाशा है
कोई विषय नहीं
जो उनकी नजर से
छूट जाते हैं
कविता ही नहीं
कहानी, संस्मरण या
गानों की पैरोडी बनाते हैं
एक जुनून सा है
हिन्दी भाषा और
देवनागरी से उनका प्यार
जरा चूके नहीं कि
किसी को भी
लगा देते हैं फटकार
किताब नहीं छपी
पर पाठ्यपुस्तक में
छप गए
इनकी इतवारी पहेली
और वर्डल में
अच्छे-अच्छे नप गए
पुरस्कार की चाह नहीं
पहचान की
नहीं रखते आस
लिखने से है प्यार
और अपने कलम पर
रखते विश्वास
सहनशीलता बहुत है
लेकिन नहीं सहते
दिखावा बेकार का
बैरागी जैसा
निकल पड़ते कहीं भी
नहीं परवाह संसार का
ऐसा भी कोई
होता है आदमी
आज के जमाने में
ताला नहीं लगाते
खुश होते हैं
सब को घर बुलाने में
सर पे बाल हैं कम
और इकहरा सा
बदन है
सुलझे विचार हैं
और सादा उनका
रहन सहन है
फिल्में पसंद है
और बच्चों जैसा
उत्साह फोटो खिंचाने में
कोई आया तो
बड़ा मजा आता है
उन्हें आस-पास घुमाने में
जो उन्हें नहीं जानते
चिढ़ते हैं उनसे
या डर जाते हैं
जो जानते हैं
वो भी कहाँ ठीक से
समझ पाते हैं
बहुत बाकी है
अभी ये कहानी
लिखना जारी है
राहुल जी
आपसे मिलना
खुश नसीबी हमारी है
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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
हॉलैंड, शनिवार 11-फरवरी-2023
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