प्रेम
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प्रेम क्या है बतायें तो कैसा भला
प्रेम के रंग रूपों, की अनगिन छटा
प्रेम पूजा है, चाहत है, या बस ललक
प्रेम सीने में, उठती हुई इक कसक
प्रेम मिलने, बिछड़ने की है इक कड़ी
प्रेम सदियों से लम्बी करे एक घड़ी
प्रेम जो ना किया, तो जिया ही नहीं
प्रेम केवल अभागे को होता नहीं
प्रेम जिनको मिला, वो बड़े भाग से
प्रेम जिनका अधूरा, वे वैराग से
प्रेम ही इस धरा को, सजाये रखे
प्रेम ही मन में, हलचल मचाये रखे
प्रेम ने कह दो किसको छुआ ही नहीं
प्रेम के बिन, कहीं कुछ धरा ही नहीं
प्रेम केवल लड़कपन की बाजी नहीं
प्रेम जीवन के हर चीज से है जुडी
प्रेम भाई करे तो बहन लाड़ली
प्रेम करती है बहना तो राखी बनी
प्रेम करती है अम्मा भले ना कही
प्रेम बाबा की रहती सदा अनकही
प्रेम ने सबको है, अपने वस में लिया
प्रेम सरवन ने, माँ-बाप से था किया
प्रेम के ही लिए, सिंधु बांधा गया
प्रेम करने को मीरा, ने विष भी पिया
प्रेम है जो किया तो समपर्ण करो
प्रेम को अपना सर्वस्व अपर्ण करो
प्रेम मोहन का पूरा हुआ ही नहीं
प्रेमी उनसे बड़ा पर नहीं है कहीं
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