सोमवार, 25 दिसंबर 2023

नेहरू की गलती

 नेहरू की गलती 
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नेहरू ने गलती मान लिया
उसको दुनिया ने जान लिया
तुम उसकी चिट्ठी बाँच रहे
और हो हो कर के नाच रहे

जब अपने ज़िम्मे देश लिया 
तब साहस इतना काम किया 
करते थे जितना कर सकते
पर बढ़ के दंभ नहीं भरते 

यह समय नहीं सुस्ताने का
अवसर है देश बनाने का 
ऐसा नारा उनका ही था 
जिम्मा सारा उनका ही था

इक सुई तलक बनती ना थी
संकट की भी गिनती ना थी
थी अपनी कोई साख नहीं
कहने को कोई साथ नहीं


जर्जर हालत में शुरू किया
फिर भी हिम्मत से काम लिया
बढ़-चढ़कर भाग लिया सबने
भारत का नाम किया सबने

वे लोग बड़े अभिमानी थे
आँखों में रखते पानी थे
जो उनको खरी सुनाते थे
वे उनको भी सहराते थे

नेहरू का चिट्ठा खोल दिया
उनको मनमानी तोल दिया
अपने भीतर झांका है क्या
जो खुद करते नापा है क्या

हर गलती दूजे पर मढ़ते
खुद अपनी तारीफें पढ़ते
लाखों के चश्मे, सूट-बूट
अवसर ना कोई जाय छुट 

तुम करते बातें बड़ी बड़ी
और स्वाँग रचते घड़ी धड़ी
तुम मानोगे अपनी गलती
ऐसी तो चाल नहीं लगती

लेकिन हिसाब सबका होता
इतिहास किसी का नहीं सगा
अपना हिसाब करवाओगे 
तुम भी तौले तो जाओगे


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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
मंगलवार २५ दिसम्बर २०२३, नीदरलैंड्स 

सोमवार, 11 दिसंबर 2023

धारा ३७०

 धारा ३७०
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अच्छा हुआ चला गया तीन सौ सत्तर
कश्मीरी विकास में राह का पत्थर

रहा होगा जरुरी जब वो बना था
आज तो गर्दन तलवार सा तना था

बदलते समय में बदलाव जरुरी है
सहते रहने की ना कोई मजबूरी है 

कश्मीर हो या कि कन्याकुमारी
भारत माँ एक है, जान से प्यारी

अब सरकार भी खुलकर आगे बढ़े
बातों से नहीं काम से भविष्य गढ़े

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
मंगलवार ११ दिसंबर २०२३, नेदरलॅंड्स 

शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

साँसो के आने में

साँसो के आने में, साँसों के जाने में
तू ही तू बसता है, हर इक फसाने में

बातों ही बातों में, जागी सी रातों में
दिल अपना दे बैठा, तुझको सौगातों में
तू भी जता दे ना, सबको बता दे ना
दिल को लगा ले ना, अपने दीवाने में
साँसो के आने में, हर इक फसाने में 

खोया अकेले में, दुनिया के मेले में
उलझा है दिल मेरा, कैसे झमेले में 
कँगन बजा दे ना, हलचल मचा दे ना
तूफाँ उठा दे ना, दिल के वीराने में
साँसो के आने में, हर इक फसाने में 

मिलने को आ जा ना, मुखड़ा दिखा जा ना
आ मेरी बाहों में, मुझमें समा जा ना
दिल में बसा ले ना, अपना बना ले ना
लक्की बना दे ना, सारे जमाने में
साँसो के आने में, साँसों के जाने में
तू ही तू बसता है, हर इक फसाने में

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
नीदरलैंड्स, शुक्रवार १० नवम्बर २०२३ 

गुरुवार, 2 नवंबर 2023

याद तेरी

 याद तेरी आज भी मुझको पुकारे
दिल में मेरे आज भी तेरी छवि है 

कारनामे वो लड़कपन के हमारे
दोस्ती क्या चीज है तुमने सिखाया
खून के रिश्ते नहीं हम खुद बनाते
खुशनसीबी है कि तुझसा यार पापा
खेल जो खेले कभी हम साथ मिलकर
उन दिनों की याद तो भूली नहीं है
दिल में मेरे आज भी…

यूँ तो अब भी साथ में संगी खड़े हैं 
पर कमी तेरी सदा खलती हवा में
छोड़कर यूँ साथ जो तुम चल दिये तो
मैं अकेला पड़ गया हूँ इस जहां में
दोस्ती का रंग जो तेरा चढ़ा फिर 
और कोई रंग अब चढ़ता नहीं है 
दिल में मेरे आज भी…

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
मंगलवार 2 नवम्बर 2023, नीदरलैंड

शनिवार, 28 अक्तूबर 2023

प्यार है

इस दुनिया में सच्चा केवल
हम दोनों का प्यार है 
बाकी सब बेकार है 
बाकी सब बेकार है 

जुल्फें तेरी नागिन जैसी
होठ गुलाबी पंखुड़ियों से
देख तुझे खिड़की के पीछे 
दिल में चलते फुलझड़ियों से
घायल मेरे दिल को कर दे
यूँ नैनों की मार है
बाकी सब…

चंदा भी फीका लगता है
तेरी बिंदिया की चम-चम से 
इंद्रपुरी में पाँव थिरकते
तेरे पायल की छम-छम से
तेरी अँखियाँ से ही जगमग
ये सारा संसार है
बाकी सब…

कोई मुझको कहे दीवाना
या पागल कहलाऊँ जग में
हम तो तुझपे ही मरते हैं
प्यार तेरा बहता रग-रग में 
बस तू मुझको अपना कह दे
इतना ही दरकार है
बाकी सब…

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
रविवार 28 अक्टूबर 2023, नीदरलैंड

सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

पितर


हे! पितर

आज हमने 

बड़े बनाये थे

आपको अर्पण करने


जमाना बदल रहा है

लोग अब 

तला खाने से 

बचते हैं ना

इसलिए 

एयर फ्रायर में बने थे


कौवों को दिया था

जो आते हैं

मुँडेर पर 

उन्होंने तो पसंद आया

वे झूम गये थे 

खाने के लिए 


आशा है

आपको भी 

अच्छे लगे होंगे


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मनीष पाण्डेय ‘मनु’

सोमवार ९ अक्टूबर २०२३, नीदरलैंड

रविवार, 1 अक्तूबर 2023

तेरी यादें


क्या हम यूँ ही बिछड़ने मिले थे

प्रेम के फूल बिखरने खिले थे

समझा जिसे बिन कहे दो दिलों ने

सच या भरम प्यार के सिलसिले थे?


जाने क्या हुआ उन सपनों उन वादों का

प्यार की तपिश में उफनते इरादों का 

कोई दुआ ना हुई कबूल जो हमने माँगी

क्या हुआ जाने दिल के उन फरियादों का 


तुझे याद करने का हासिल यही है 

ये दुनिया लगे मेरे काबिल नहीं है 

करना मुझे क्या जमाने से ऐसे 

जो होने में तू मेरे शामिल नहीं है 

कसमसाता समाज

 क्या आप जानते हैं

बहुत जल्द

ऐसा भी दिन आयेगा

जब बच्चे अपनी माँ को 

माँ नहीं कहेंगे

और पिता को 

पिता नहीं कहेंगे


उन्हें कहना होगा 

अभिभावक

या फिर शायद 

कोई नया शब्द बनाया जाएगा

जिसमें माता-पिता का 

बोध नहीं होगा


क्योंकि जब

स्त्री-पुरुष के मेल को ही

विवाह, परिवार या अभिभावक

नहीं माना जायेगा

तब तो

पति-पत्नी ही नहीं होंगे

फिर माता-पिता का 

प्रश्न कहाँ से आएगा


और तो और

बेटा-बेटी नहीं होंगे

भाई-बहन नहीं होंगे

सभी रिश्तों के नाम

बदल दिये जाएँगे


क्योंकि 

बदलते समय के साथ

समाज करवट ले रहा है

और इस कसमसाते समाज को

लैंगिक विविधता 

स्वीकार नहीं है


———————————

मनीष पाण्डेय ‘मनु’

रविवार 1 अक्टूबर २०२३, नीदरलैंड

शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

याद

 याद तेरी आज भी मुझको पुकारे

दिल में मेरे आज भी तेरी छवि है 


कारनामे वो लड़कपन के हमारे

दोस्ती क्या चीज है तुमने सिखाया

खून के रिश्ते नहीं हम खुद बनाते

खुशनसीबी है कि तुझसा यार पापा

खेल जो खेले कभी हम साथ मिलकर

उन दिनों की याद तो भूली नहीं है

दिल में मेरे आज भी…


यूँ तो अब भी साथ में संगी खड़े हैं 

पर कमी तेरी सदा खलती हवा में

छोड़कर यूँ साथ जो तुम चल दिये तो

मैं अकेला पड़ गया हूँ इस जहां में

दोस्ती का रंग जो तेरा चढ़ा फिर 

और कोई रंग अब चढ़ता नहीं है 

दिल में मेरे आज भी…


शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

गुरु का आशीष

मिल गया आशीष
जब अपने गुरु से
भाग पर अपने बहुत
इठला रहा हूँ 
आप से सीखा वही
दोहरा रहा हूँ

खुल गई थी आँख
पर जागा नहीं था
चल रहे थे पाँव
पर जाना कहाँ था?
आप ने जो राह दिखलाई
उसी को साध कर 
मंजिलों की ओर 
बढ़ता जा रहा हूँ
आपसे सीखा…


शून्य में आकाश के
बिखरा हुआ इक पिण्ड था
तमस में लिपटा मलिन
बिसरा हुआ सा खिन्न था
रोशनी से आपकी
जो धुल गया तो
चाँदनी से अब गगन 
चमका रहा हूँ
आपसे सीखा…

हो रहा था व्यर्थ जीवन
थे निरर्थक काम सब 
दिग्भ्रमित हो था भटकता
कुछ नहीं था भान तब 
मिल गया आशीष
जब अपने गुरु से
भाग पर अपने बहुत
इठला रहा हूँ 
आपसे सीखा…

————————————
मनीष पाण्डेय ‘मनु’
शुक्रवार २२ सितंबर २०२३, नीदरलैंड्स 

शुक्रवार, 15 सितंबर 2023

बाकी सब बेकार है

 इस दुनिया में सच्चा केवल

हम दोनों का प्यार है 

बाकी सब बेकार है 

बाकी सब बेकार है 


जुल्फें तेरी नागिन जैसी

होठ गुलाबी पंखुड़ियों से

देख तुझे खिड़की के पीछे 

दिल में चलते फुलझड़ियों से

घायल मेरे दिल को कर दे

यूँ नैनों की मार है

बाकी सब…


चंदा भी फीका लगता है

तेरी बिंदिया की चम-चम से 

इंद्रपुरी में पाँव थिरकते

तेरे पायल की छम-छम से

तेरी अँखियाँ से ही जगमग

ये सारा संसार है

बाकी सब…


कोई मुझको कहे दीवाना

या पागल कहलाऊँ जग में

हम तो तुझपे ही मरते हैं

प्यार तेरा बहता रग-रग में 

बस तू मुझको अपना कह दे

इतना ही दरकार है

बाकी सब…

शुक्रवार, 4 अगस्त 2023

दुनिया

दिखावे पे अपने ही मरती ये दुनिया 

दिखावे के दम पर ही जलती ये दुनिया


शराफत करे उसको कमजोर समझे

किसी धाँसिये से ही डरती ये दुनिया


नसीहत के किस्से सुने तो बहुत पर 

नहीं सीखती ना बदलती ये दुनिया 


नहीं भीड़ का कोई मालिक यहाँ पर

फकत भेड़ जैसे ही चलती ये दुनिया 


नहीं एक शय जिसमें शामिल नहीं वो

उसे खोजने क्यों भटकती ये दुनिया


किसी और के सच को अपना बना कर

बिना बात मुश्किल में पड़ती ये दुनिया 


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मनीष पाण्डेय ‘मनु’

हिन्दी, शुक्रवार ४ अगस्त २०२३ 

बुधवार, 19 जुलाई 2023

कुर्सी

देश के लिए पदक लाओ
पसीना तो क्या खून बहाओ
पर हक की आवाज ना उठाओ
मेरे दामन पर दाग ना लगाओ

तुमने अपना मुँह जो खोला
फिर तो मेरा धीरज डोला
कोई इनको सबक सिखाओ
कीचड़ उछालो धारा लगाओ

जनता तो है गूँगी बहरी
उसके ऊपर अंधी ठहरी
उसके ईमान मत जगाओ
मैं जो कहूँ बस मान जाओ

झूठ से भरा पुलिंदा बनाकर 
स्टोरी कहो या  फाइल्स बनाकर 
बढ़-चढ़ कर इंटरव्यू दे आओ
खुद को ही सच का मसीहा बताओ

कैमरे पर हरदम रखो नजर 
कुर्सी के लिए साष्टांग हो कर 
तबाशबीनों को कुछ करतब दिखाओ
माहौल बना दे वो जुमले चलाओ

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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
शुक्रवार 19 जुलाई 2023, नीदरलैंड

सोमवार, 10 जुलाई 2023

गजल

 गजल

वजन सीने पे रक्खा है वजन काँधे पे डाला है
वजन से तौल के मिलता यहाँ हर इक निवाला है

शिकायत है उसे हमसे हमारा तौर दूजा है
मगर मालिक ने हम सबको बनाया ही निराला है

कहाँ तुम ढूँढ़ते उसको गुफाओं या पहाड़ों में
हर इक के आत्मा में झाँक कर देखो शिवाला है

कभी साखों पे जिसके बांध झूले डोलते थे हम
बहुत अफसोस के वो पेड़ बूढ़ा गिरने वाला है

यहाँ तक ठीक था वो खुद को इक राजा बताये
अहं में चूर वो खुद को नबी बतलाने वाला है

बहुत बेचैन है राही किसी अनजान खतरे से
किनारा आ गया माझी ने अब लंगर निकाला है 

नहीं दरकार है मुझको किसी सजने सँवरने की
मुहौब्बत के दमक से रूप मेरा खिलने वाला है 

भले अंधियार काली रात की गहरी सी छाई हो 
जला जो दीप छोटा सा पसार जाता उजाला है 

बुधवार, 7 जून 2023

तेरी पायल की ये छनछन -- गीत

***तेरी पायल की ये छनछन -- गीत***

तेरी पायल की ये छनछन 
तेरी कंगना की ये खनखन
जान लेगी मेरी एक दिन
चाल ये हँसनी सी तेरी

तेरी पायल की ये छनछन 
तेरी कंगना की ये खनखन
जान लेगी मेरी एक दिन
चाल ये हँसनी सी तेरी

तेरी पायल की ये छनछन 

पूनम के चंदा को धरती में ले आये हैं
सावन की बदली से बांध के छाये हैं
बांध के छाये हैं छाये हैं… हाय… 

तेरी पायल की ये छनछन 

आगन की गेंदा हो, सुबह के सूरज सामान हो 
नदिया की लहरों सी, धान बाली की मुस्कान हो 
बाली की मुस्कान हो, मुस्कान हो… हाय…

तेरी पायल की ये छनछन 

बोली तुम कोयल की, चन्दन की तुम डाल हो
महकाती तन मन को चम्पा की तुम हार हो 
चम्पा की तुम हार हो, हार हो… हाय…

तेरी पायल की ये छनछन 
तेरी कंगना की ये खनखन
जान लेगी मेरी एक दिन
चाल ये हँसनी सी तेरी

तेरी पायल की ये छनछन

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यह कविता सन् 1965 में बनी छत्तीसगढ़ी फिल्म 'कहि देबे संदेस' के एक प्रसिद्द गीत "तोर पैरी के झनर-झनर" से प्रेरित है जिसे स्वर्गीय मोहम्मद रफी ने स्वरबद्ध किया था


गीतकार : डॉ.हनुमंत नायडू ‘राजदीप’
संगीतकार : मलय चक्रवर्ती
स्वर : मोहम्मद रफी
फिल्म : कहि देबे संदेस
निर्माता-निर्देशक : मनु नायक
फिल्म रिलीज : 1965
संस्‍था : चित्र संसार

साभार: https://cgsongs.wordpress.com/2011/03/12/torpairikejhanarjhanar/ 

रविवार, 14 मई 2023

परदेसी

आसमान में

तारामण्डल देख

मन ही मन गुनता हूँ 

मेरा घर 

किस दिशा में होगा?


घड़ी देख के

अंदाजा लगाता हूँ

कितना बजा होगा

वहाँ अभी?


कल्पना करता हूँ

माँ क्या कर रही होगी?


याद करता हूँ

मैं क्या करता था

जेठ-वैशाख की

उजली रातों में?


घर लौटते हुए

सड़क छोड़

गली पकड़ते ही

बचपन की गली

याद आती है


गली की छोर से

घर का दरवाजा देख

माँ को खोजता हूँ

दुआरे पर खड़ी

राह तकते

स्कूल से आने में

जब देर हो जाती थी


ब्याह के 

पिया घर आई

बिटिया की तरह


हर छोटी-बड़ी

बात पर 

बाबुल के घर को

याद करते हैं 

परदेसी भी


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मनीष पाण्डेय ‘मनु’

नीदरलैंड्स, शनिवार 14 मई 2023