क्या हम यूँ ही बिछड़ने मिले थे
प्रेम के फूल बिखरने खिले थे
समझा जिसे बिन कहे दो दिलों ने
सच या भरम प्यार के सिलसिले थे?
जाने क्या हुआ उन सपनों उन वादों का
प्यार की तपिश में उफनते इरादों का
कोई दुआ ना हुई कबूल जो हमने माँगी
क्या हुआ जाने दिल के उन फरियादों का
तुझे याद करने का हासिल यही है
ये दुनिया लगे मेरे काबिल नहीं है
करना मुझे क्या जमाने से ऐसे
जो होने में तू मेरे शामिल नहीं है
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