कौन हो तुम?
मेरे ख्वाबों सी अपनी,
मेरे ख़यालों सी चंचल।
कौन हो तुम?
कि तुम्हारी 'यादें'
मुझे क्यों सताने लगी है?
चिढाने लगी है
क्यों ये 'हवा'
तुम्हारे नाम से?
कौन हो तुम?
कि घुल रही है
मेरे 'सांसों' में
तुम्हारी खुशबू।
समा रही है
तुम्हारे पायल
की 'छन-छन'
मेरी धड़कनों में।
कौन हो तुम?
कि बढ़ने लगी है
तुम्हारी 'चाहत'
मेरी दुआओं में।
क्यों नहीं भूलता
मैं तुम्हारी 'आखें'
जिनमें मेरी तकदीर
नजर आती है?
कौन हो तुम?
मेरे मन में बसी है
जो 'मूरत',
क्या तुम्हारी है?
क्या तुम्हीं हो?
जिसे लिखा गया है
मेरे हाथ कि लकीरों में
जन्म-जन्मांतर के लिए?
कौन हो तुम?
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मनीष पाण्डेय "मनु"
जाँजगीर (छग), बुधवार ३ जनवरी २००१
मेरे ख्वाबों सी अपनी,
मेरे ख़यालों सी चंचल।
कौन हो तुम?
कि तुम्हारी 'यादें'
मुझे क्यों सताने लगी है?
चिढाने लगी है
क्यों ये 'हवा'
तुम्हारे नाम से?
कौन हो तुम?
कि घुल रही है
मेरे 'सांसों' में
तुम्हारी खुशबू।
समा रही है
तुम्हारे पायल
की 'छन-छन'
मेरी धड़कनों में।
कौन हो तुम?
कि बढ़ने लगी है
तुम्हारी 'चाहत'
मेरी दुआओं में।
क्यों नहीं भूलता
मैं तुम्हारी 'आखें'
जिनमें मेरी तकदीर
नजर आती है?
कौन हो तुम?
मेरे मन में बसी है
जो 'मूरत',
क्या तुम्हारी है?
क्या तुम्हीं हो?
जिसे लिखा गया है
मेरे हाथ कि लकीरों में
जन्म-जन्मांतर के लिए?
कौन हो तुम?
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मनीष पाण्डेय "मनु"
जाँजगीर (छग), बुधवार ३ जनवरी २००१