मंगलवार, 26 जनवरी 2021

जय हिन्द

अब हम बच्चे नहीं रहे
इसलिए छब्बीस जनवरी और 
पंद्रह अगस्त के दिन 
स्कुल नहीं जाते-
साफ-सुथरे ड्रेस में 
तैयार होकर

दस-बारह दिनों तक 
आईने के सामने खड़े होकर
ऊंचे स्वर में 
अपने गीत, भाषण 
या नाटक के संवादों की 
तैयारी भी नहीं करते 

नहीं गाते 
सारे जहां से अच्छा,
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
और वंदे मातरम् के गान
और न ही बूंदी के लड्डू 
देता है कोई 

सरकारी नौकरी भी नहीं है हमारी 
कि कम से कम 
कार्यालय में ही
नील गगन में फहराते
तिरंगे को सलामी देकर 
भारत माता के जयकारे लगाएँ 

और तो और,
हम तो भारत में ही नहीं है 
कि आते जाते, कहीं-न-कहीं  
गगन कि शोभा बढ़ाता 
तिरंगा झण्डा दिखे,
या बच्चों कि कोई रैली 
ही दिख जाए 
जो जा रहा हो 
नारे लगाता 
कौमी तिरंगे झंडे के साथ

सुबह-सुबह से कानों में 
देश भक्ति से भरे 
फिल्मी गानों कि आवाज भी 
नहीं सुनाई देती है 
कहीं दूर से आती हुई 

लेकिन
भारत माँ के लिए प्रेम 
और भारतीय होने का गौरव  
आश्रित नहीं है 
किसी तारीख
किसी जगह 
किसी कागज के टुकड़े
या किसी और के दिये 
देशभक्ति के प्रमाण-पत्र का 

माँ भारती तो 
हमारी हर-सांस
हर धड़कनों में बसी है 
और उसके जिक्र भर से 
रोम-रोम पुकारता है 
जय! हिन्द, जय! हिन्द

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मनीष पाण्डेय “मनु”
लक्सम्बर्ग, मंगलवार 26-जनवरी-2021