बुधवार, 1 जनवरी 2020

तुम जो बस गए दिल मे

तुम जो बस गए दिल मे, इसे अब और  कुछ भाता नहीं
नहीं लगता कहीं भी मन, इसे अब कोई बहलाता नहीं!!

तेरी जब याद आती है, तो ठंडी आह भरता हूँ 
दिल ही दिल में तड़पता हूँ, मगर चुपचाप सहता हूँ
दर्द-ए-दिल में कोई मरहम किसी भी काम में आता नहीं
तुम जो बस गए दिल में, इसे अब और कुछ भाता नहीं


यूँ तो मैं मुस्कुराता हूँ,  ख़ुशी के गीत गाता हूँ 
महफ़िलो में भी जाता हूँ हज़ारों लोग मिलते हैं
गले सबको लगाता हूँ मगर दिल से लगा पाता नहीं
तुम जो बस गए दिल में, इसे अब और कुछ भाता नहीं

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मनीष पाण्डेय "मनु"
लक्सेम्बर्ग, बुधवार १ जनवरी २०२०