सोमवार, 7 जनवरी 2019

बरगद का पेड़

आपने सुना होगा
या शायद
देखा भी होगा
बरगद की छाँव के नीचे
कुछ नहीं पनपता,
यहाँ तक की
घास भी
करीने से नहीं होती
उसके नीचे|

पर मैंने देखा है
बरगद का एक ऐसा
विशाल पेड़
जिसके नीचे
अनगिनत पौधे
ने केवल पनपे
बल्कि
बड़े-बड़े वृक्ष हुए
खड़े हैं लहलहाते|

जाने कितनी बार तो
किसी चिड़िया की
चोंच से गिरे
या हवा के झोंके में
उड़कर आये
बीज भी
उस बरगद की छाया में
अंकुरित हुए
खुब फले और फूले भी|

वक्त मिले
तो कभी
उस बरगद की
छाँव में जाकर बैठना,
बड़ा शुकुन मिलेगा,
और मिलेगी
एक ऐसी प्रेरणा
जो आपको भी
बड़ा जीवट
और
कर्मठ बना देगी|

क्या आप नहीं मानते?
अरे भाई!
मैं खुद भी
उसी बरगद की छाया में
पनपा
एक छोटा सा पौधा हूँ
इसलिए
बता रहा हूँ ये कहानी
उस विशाल बरगद की|

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मनीष पाण्डेय "मनु"
अलमेर (नीदरलैंड्स), सोमवार ७ जनवरी २०१९

रविवार, 6 जनवरी 2019

वक्त की नायाब इबारत

दरारें पड़ने लगी हैं
पुराने महल की दीवारों पर,
खिड़की-दरवाजों पर
 जमने लगी हैं जंग की परतें|

हलकी सी बारिस भी
अब सराबोर कर देती है इसे,
सावन-भादों की उफान
जहाँ अपना दम तोड़ देती थी|

पर ये ईमारत सिर्फ एक
दरो-दीवार का दायरा नहीं है,
एक मुस्तकिल निशानी है
पहचान है- कलम के ताकत की|

एक ऐसा चिराग है
कलम की राहों में रौशन,
जिसकी उजालों में
गीतों कहानियों की नस्ले चलेंगी|

एक नायाब इबारत है
जो हजारों दिलों में बस गया है,
एक ऐसा सुरीला गीत है
जो वक्त खुद लिख रहा है इत्मीनान से|


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मनीष पाण्डेय "मनु"
अलमेर (नीदरलैंड्स), रविवार ६ जनवरी २०१९