रविवार, 6 जनवरी 2019

वक्त की नायाब इबारत

दरारें पड़ने लगी हैं
पुराने महल की दीवारों पर,
खिड़की-दरवाजों पर
 जमने लगी हैं जंग की परतें|

हलकी सी बारिस भी
अब सराबोर कर देती है इसे,
सावन-भादों की उफान
जहाँ अपना दम तोड़ देती थी|

पर ये ईमारत सिर्फ एक
दरो-दीवार का दायरा नहीं है,
एक मुस्तकिल निशानी है
पहचान है- कलम के ताकत की|

एक ऐसा चिराग है
कलम की राहों में रौशन,
जिसकी उजालों में
गीतों कहानियों की नस्ले चलेंगी|

एक नायाब इबारत है
जो हजारों दिलों में बस गया है,
एक ऐसा सुरीला गीत है
जो वक्त खुद लिख रहा है इत्मीनान से|


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मनीष पाण्डेय "मनु"
अलमेर (नीदरलैंड्स), रविवार ६ जनवरी २०१९

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