मिल गया आशीष
जब अपने गुरु से
भाग पर अपने बहुत
इठला रहा हूँ
आप से सीखा वही
दोहरा रहा हूँ
खुल गई थी आँख
पर जागा नहीं था
चल रहे थे पाँव
पर जाना कहाँ था?
आप ने जो राह दिखलाई
उसी को साध कर
मंजिलों की ओर
बढ़ता जा रहा हूँ
आपसे सीखा…
शून्य में आकाश के
बिखरा हुआ इक पिण्ड था
तमस में लिपटा मलिन
बिसरा हुआ सा खिन्न था
रोशनी से आपकी
जो धुल गया तो
चाँदनी से अब गगन
चमका रहा हूँ
आपसे सीखा…
हो रहा था व्यर्थ जीवन
थे निरर्थक काम सब
दिग्भ्रमित हो था भटकता
कुछ नहीं था भान तब
मिल गया आशीष
जब अपने गुरु से
भाग पर अपने बहुत
इठला रहा हूँ
आपसे सीखा…
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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
शुक्रवार २२ सितंबर २०२३, नीदरलैंड्स
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