नेहरू की गलती
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नेहरू ने गलती मान लिया
उसको दुनिया ने जान लिया
तुम उसकी चिट्ठी बाँच रहे
और हो हो कर के नाच रहे
जब अपने ज़िम्मे देश लिया
तब साहस इतना काम किया
करते थे जितना कर सकते
पर बढ़ के दंभ नहीं भरते
यह समय नहीं सुस्ताने का
अवसर है देश बनाने का
ऐसा नारा उनका ही था
जिम्मा सारा उनका ही था
इक सुई तलक बनती ना थी
संकट की भी गिनती ना थी
थी अपनी कोई साख नहीं
कहने को कोई साथ नहीं
जर्जर हालत में शुरू किया
फिर भी हिम्मत से काम लिया
बढ़-चढ़कर भाग लिया सबने
भारत का नाम किया सबने
वे लोग बड़े अभिमानी थे
आँखों में रखते पानी थे
जो उनको खरी सुनाते थे
वे उनको भी सहराते थे
नेहरू का चिट्ठा खोल दिया
उनको मनमानी तोल दिया
अपने भीतर झांका है क्या
जो खुद करते नापा है क्या
हर गलती दूजे पर मढ़ते
खुद अपनी तारीफें पढ़ते
लाखों के चश्मे, सूट-बूट
अवसर ना कोई जाय छुट
तुम करते बातें बड़ी बड़ी
और स्वाँग रचते घड़ी धड़ी
तुम मानोगे अपनी गलती
ऐसी तो चाल नहीं लगती
लेकिन हिसाब सबका होता
इतिहास किसी का नहीं सगा
अपना हिसाब करवाओगे
तुम भी तौले तो जाओगे
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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
मंगलवार २५ दिसम्बर २०२३, नीदरलैंड्स
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