बेनाम रिश्ते
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बहुत सी रेखाएँ हैं
मेरी हथेली पर
कुछ टेढ़ी-मेढ़ी
कुछ लम्बी
कुछ छोटी
पता नहीं
वो कौन सी रेखा है
जिसमें लिखा है
तुम्हारा नाम
क्यों अचानक
तुम्हारा खयाल आता है
और मन होता है
तुमसे बात करने का
और क्यों तुम भी
मेरा फोन आने पर
बातें सुनाने लगती हो
दुनिया भर की?
मन में सवाल आता है
क्या रिश्ता है
मेरा तुम्हारा?
समझ नहीं पाता
कैसे कोई
इस तरह से
दिल में बस जाता है
और कैसे बन जाते हैं
बेनाम रिश्ते?
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मनीष पाण्डेय ‘मनु’
सोमवार, १-जनवरी २०२४, नीदरलैंड
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