अब तो भारत से बाहर रहते हुए लगभग दो दसक हो गए और २०१२ से मैं नीदरलैंड रहता हूँ| इस देश स्कुल में छुटियाँ जुलाई के तीसरे सप्ताह से शुरू हो कर सितम्बर के पहले सोमवार तक होती है इसलिए हर वर्ष हम उन्हीं छुट्टियों में चार-पांच सप्ताह के लिए भारत जाते हैं|
विगत कुछ वर्षों से हमने यह क्रम बनाया है कि जब हम भारत जाएँ तब माता-पिता के साथ दोनों भाई भी अपने पुरे परिवार को लेकर कुछ दिनों की यात्रा पर जाते हैं| मेरा कई वर्षो से भगवान विश्वनाथ के दर्शन करने काशी जाने का मन हो रहा था और २०२२ में श्रावण मास ही अधिक मास होने के कारण ठीक हमारी यात्रा के समय था इसलिए हम दोनों भाइयों ने मिलकर काशी जी की यात्रा का मन बनाया| जब माँ को पता चला कि उस दिशा की यात्रा की योजना हो रही है तब माँ ने कहा कि मुझे अयोध्या भी ले चलो| चूँकि राम जी का मंदिर अभी निर्माणाधीन ही है तो हमने कहा क्यों ना अगले वर्ष वहाँ चले परन्तु माँ ने कहा कि ईश्वर ने चाहा तो फिर भले चले जायेंगे लेकिन दिन दिन अब शरीर कमजोर हो रहा है और रामलला के दर्शन करने को बहुत मन है| बात तय हो गयी और हमने यात्रा की रुपरेखा तैयार की और तय किया कि बिलासपुर (छत्तीसगढ़) से प्रयागराज जायेंगे| सुबह सवेरे पहुँच कर सीधे संगम जाकर त्रिवेणी संगम में स्नान पूजा और बाकि दिन भर प्रयागराज घूमने के बाद शाम की गाड़ी से अयोध्या जी के निकल जायेंगे| अयोध्या जी में २ रात्रि और दो दिन रुकने की योजना बानी और उसके बाद पुण्य काशी नगरी जायेंगे जहाँ तीन दिन रहेंगे|
प्रयागराज से अयोध्या की ट्रेन शाम साढ़े छह बजे थी और वहाँ साढ़े पांच घंटे बाद हम रात्रि बारह बजे के बाद अयोध्या पहुँचने वाले थे| साथ में ३ छोटे बच्चे और सयाने हो चुके माता पिता होंगे इसलिए पहले ही होटल की बुकिंग करलेने का विचार हुआ ताकि उतनी रात रुकने का प्रबंध करने के लिए इधर उधर भटकना ना पड़े| आजकल इंटरनेट ने सारी दुनिया की दूरिओं को समेट कर आपके गोद में (लैपटॉप) और आपकी हथेली में (फोन) पर ला दिया है| इंटरनेट पर खोजने पर राम मदिर से से कुछ आधे किमी की दूरी पर एक अच्छा होटल मिला “श्री राम होटल” और साथ ही मिला उनका व्हाट्सअप नंबर जिस पर मैंने दो अगस्त से चार अगस्त तक दो कमरों की बुकिंग करा ली| होटल ने यूपी आई भी का विवरण भेजा और मैं अग्रिम भुगतान कर दिया ताकि बाद में कोई असुविधा ना हो|
२ अगस्त को प्रयागराज में दिनभर का कार्यक्रम तो ठीक चला और लगभग शाम साढ़े पांच बजे स्टेशन के लिए निकल पड़े| “सरयू एक्सप्रेस” में खाने का प्रबंध नहीं था इसलिए हमने सोचा कि ट्रेन में बैठने के पहले स्टेशन के पास किसी होटल से खाना बंधवा लिया जाये| जब तक हम स्टेशन पहुंचे हल्की बारिस शुरू हो गई थी तब मैंने घर वालों को प्लेटफॉर्म पर अच्छी जगह देखकर बैठने को कहा और दौड़कर स्टेशन के सामने के होटल से खाना लेने के लिए दौड़ पड़ा| मेरे होटल पहुंचने की देर थी कि एकदम झमाझम बारिस शुरु हो गयी जिसके कारन सड़कें और आस पास की जगह सब सराबोर हो गयी| होटल से स्टेनशन पहुँचते तक तक रास्ता घुटने से ऊपर तक पानी से भर गया था इसलिए खाने की थैली को दोनों हाथों से ऊपर उठाये ऐसे ही पानी में चल पड़ा और बस इतना ध्यान था कि कहीं कोई बड़ा गड्ढा ना मिलजाये जिसमें मैं गिर पडूँ और सारा खाना खराब हो जाये| स्टेशन पर कपड़े बदले और प्लेटफॉर्म की तरफ चल दिए क्योंकि अब गाड़ी लगने का समय हो गया था| प्रयागराज का संगम स्टेशन उस लाइन का पहला स्टेशन है तो किसी भी प्लेटफार्म पर जाने के लिए सीढ़ी चढ़नी नहीं पड़ती| ट्रेन हमारे सामने ही आयी और फिर दरवाजे खुलें पर पनी जगह पर जा कर बैठ गए| गाड़ी जब आगे बढ़ी तो कुछ आधे घण्टे बाद खाना निकालकर खाने लगे| मैंने खाना निकालकर पहले अपनी माँ को दिया फिर पिता जी को तब पहली बार ऐसा हो रहा था कि वे बच्चों की तरह बैठे थे और मैं सब भाग-दौड़ कर रहा था, खाना निकालो, प्लेट में दो, पानी दो और ध्यान रखो कि कुछ और चाहिए क्या? ऐसा लगा कि समय का पहिया पुरे एक चक्कर घूम गया है और मैं अब वहां पहुँच गया हूँ जहाँ कभी वे होते थे| इसी तरह से कुछ नई-पुरानी बातें करते यात्रा आगे बढ़ रही थी| कुछ दो घंटे की यात्रा हुयी होगी की गाड़ी एक स्टेशन पर रुकी और फिर चलने का नाम ही ना ले| जब कुछ आधा घण्टे पता लगाया कि आखिर हुआ क्या है तब जाना कि स्टेशन से कुछ ही आगे एक डीजल वाली गाड़ी का इंजन ख़राब हो गया है और नए इंजन आने तक रुकना होगा| इस सब में दो घंटे का समय लग गया| अच्छा यह हुआ कि गाड़ी स्टेशन में खड़ी थी इसलिए गाढ़ी में बिजली नहीं गयी और वातानुकूलन चलता रहा नहीं तो बड़ी असुविधा होती| जब लाइन खुल गया तब गाडी आगे बढ़ी और अयोध्या आते-आते लगभग रात के तीन बज गए थे|
गाढ़ी जैसे ही अयोध्या कैंट से निकली मन में एकदम से भाव आ गया कि प्रभु श्री राम के धाम अयोध्या जी अब पहुँच ही गए| वैसे तो हिन्दुओं के देवी देवताओं की कोई गिनती नहीं हैं क्योंकि शास्त्रों में ही उनके तैतीस प्रकार (कोटि) या वर्ग बताये गए हैं जिनमें वैदिक-पौराणिक ही नहीं जल-थल-नभ-वायु आदि से जुड़े भी देवी देवता हैं और फिर माता-पिता, गुरु, गृह, ग्राम, कुल आदि के देवता भी सम्मिलित हैं| लेकिन कुछ देवी देवता सार्वभौमिक प्रमुख रूप से पूजे जाते हैं और जिनमें से श्री राम जी का नाम अग्रणी है| राम ऐसे देवता हैं जो केवल कर्मकाण्ड में पूजित नहीं हैं बल्कि हमारे जीवनशैली का हिस्सा हैं| किसी को मिलने पर अभिवादन में राम-राम कहने से लेकर जीवन के हर पहलु में राम नाम का वास है| राम नाम इतना सरल सहज है कि जिस तरह स्वासों के आने-जाने में कोई विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता उसी प्रकार राम का नाम लेने में कोई विशेष जतन नहीं करना पड़ता| राम बस सहज ही उच्चारित हो जाता है| उन्हीं राम के धाम अयोध्या जी में प्रवेश पाते ही मन एकदम विव्हल हो गया और रोम-रोम में राम की अनुभूति होने लगी| हाथ जोड़कर उनको मन ही मन प्रणाम किया और सोचने लगा कि जाने किस जनम के पुण्य आज साकार हुए होंगे कि इस अयोध्या की पवन धरा में आने का अवसर मिला|
जब गाड़ी अयोध्या स्टेशन पहुंचकर रुकी तो जोर से एकबार उनके नाम की जय घोष हुई - “सियावर राम चंद्र की - जय” और अन्य जिन यात्रियों को वहां उतरना था उनके साथ धीरे धीरे हम भी उतर गए| अयोध्या स्टेशन के बाहर ही रिक्शा मिली जो बैटरी से चलती हैं| हमने दो रिक्शा लिया और सामान चढ़ाने के साथ सभी बैठकर होटल के लिए निकल पड़े| रिक्शे वाले को होटल का पता था इसलिए बिना इधर उधर भटके ही होटल पहुँच गए| होटल में अपना कमरा मिला तब तक रात्रि के लगभग चार बज गए तो सीधे सोने लगे और राम की नगरी में ही उनकी कृपा की छाया में बड़ी भली नींद आयी|
अगले दिन सुबह सबसे पहले सरयू स्नान का कार्यक्रम तय हुआ था इसलिए सुबह आठ बजे तक सूखे कपडे पकड़कर होटल से निकल गए| सामने चौराहे पर ही गाड़ी मिल गई जिसमें बैठ सरयू के लिए निकल गए| उस दिन किसी कारन विशेष से कुछ रास्ते बंद थे तो गाड़ी वाले ने थोड़ा घुमावदार रास्ता लिया और जितना हो सका सरयू के किनारे पहुँचाकर आगे रास्ता बताया| उसने यह भी कहा की स्नान के बाद जब आगे चलकर राम की पैड़ी तरफ से आएंगे तब हमें उस किनारे पर वापस मिलेगा| बस उसे कुछ १५-२० मिनट पहले सूचित कर दें| उसने हमें जहाँ उतारा वहां से सबसे पहले सरयू का नया घाट आया जिसमें नाव की सवारी होती है और हम सबसे पहले एक नाव में बैठ उसका आनन्द लेने निकल पड़े|
चूँकि सावन का महीना चल रहा था सरयू में बहुत पानी था जिसके कारण धार तेज थी लेकिन नाव भी पर्याप्त सक्षम थी और चालक भी कुशल था| आजकल भारत में भी हर बात की सजगता बढ़ती जा रही है इसलिए बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी को पानी में गिर जाने की स्थिति में डूबने से बचाने के लिए जीवन-रक्षक जैकेट पहनाया गया था| बरसात के मौसम में हर तरफ का पानी बहकर आने के कारन पानी बहुत मटमैला था लेकिन फिर भी नाव की सवारी का आनंद आया| नाव से उतरकर हम आगे ऐसे किसी घाट की खोज में बढ़ चले जिसमें नहाने की सुविधा हो|
हमने देखा की हर घाट में शासन की तरफ से सुरक्षा के लिए घेरा लगाया गया था जहाँ से आगे जाना मना था क्योंकि नदी की धार तेज थी| हमने एक जगह को उचित समझकर वहां स्नान का निर्णय किया और जैसा कि सभी तीर्थों में होता है, हमें स्नान करता देख वहां के पुजारी भी आ गए| उन्होंने हमें घाट में सरयू नदी की पूजा आरती कराई और कर्मकाण्ड के अनुसार पितरों की शांति के लिए गौदान के पूजा का विधान किया| आपने सामर्थ्य और श्रद्धा के अनुसार उनको दान-दक्षिणा देने के बाद हम घाट के किनारे ही आगे बढ़ गए| बच्चे अब भूखे हो गए तो उनके लिए किसी ठेले से पकौड़े आदि लिया और पास के एक दुकान से पेठा लिया जो बहुत स्वादिस्ट था और मथुरा के पेठे की याद दिला गया| उसके बाद गाड़ी वाले को फोन कर दिया और उसके आते तक राम की पैढी के आस पास थोड़ा और घूमने घूमने लगे| होटल आकर हमें भोजन किया और थोड़े विश्राम के बाद अब राम लला के दर्शन करने का समय था| दर्शन का समय सुबह सात से ग्यारह बजे और उसके बाद दोपहर दो से छह बजे तक का होता है| श्री राम मन्दिर हमारे होटल से चलकर जाने की दूरी पर ही था तो लगभग एक बजे निकल पड़े और दिन में बहुत गर्मी थी इसलिए बच्चों ने रास्ते में नारियल पानी का आनंद लिया|
इसे राम कृपा ही कहें कि हमारे आने एक दिन पहले ही राम मंदिर जाने का रास्ता बदल दिया गया था| पहले बहुत घूम कर जाना होता था और अब नए मंदिर के प्रवेश का मार्ग खोल दिया गया था इसलिए मुख्य सड़क से राम लला के मंदिर तक का रास्ता कुछ तीन सौ मीटर होता है| चूँकि नए मंदिर के उद्घाटन का कार्यक्रम जनवरी २०२४ में होना था इसलिए वहां का काम बहुत तेजी से चल रहा था| माँ तेजी से नहीं चल सकती और थक जाती है इसलिए धीरे-धीरे बढ़ ही रहे थे कि पता चला कि मंदिर में मोबाइल, पर्स, स्मार्ट-घडी आदि कुछ नहीं ले जा सकते इसलिए उनकों सुरक्षित रखने के लिए लाकर की व्यवस्था है और साथ ही आप अक्षम लोगों के लिए सहायक ले सकते हैं जो उन्हें पहियाकुर्सी (व्हील चेयर) में बिठाकर ले जाते हैं| हमने माँ के लिए उसकी व्यवस्था की और मदिंर दर्शन के लिए लग गए| अभी हम पहुंचे ही थे कि दर्शन का समय हुआ और प्रवेश शुरू हो गया| तब तक बहुत भीड़ नहीं लगी थी और माँ के व्हील चेयर के कारण थोड़े किनारे से निकलते हुए हम राम लला के दर्शन को बढ़ चले| दर्शन की लाइन जहाँ लगती है उसके सामने ही वह स्थल था जहाँ प्रमुख राममन्दिर था बन रहा था| चूकिं अभी काम चल रहा है इसलिए उस तरफ सामान्य जनता को जाने नहीं दिया जा रहा था| दूर से ही सही लेकिन उस मंदिर को देखकर मन में बहुत खुशी हुई और यही भाव आया कि भूरे-लाल रंग के पत्थर से बन रहे मंदिर को जब इस आधे अधूरे रूप में देखकर इतना भव्य लग रहा था तो जब यह पूरा हो जायेगा तब इसकी छटा और क्या सुन्दर होगी?
अब रामलला के दर्शन की लालसा और उत्साह दोनों चरम पर थे| चारों ओर से जय सिया राम, जय श्री राम और सियावर राम चन्द्र की जय आदि जयघोष की ध्वनि दिक्-दिगन्तर में गूंज रही थी| मदिंर के पास के घेरे में कुल पांच से सात मिनट का समय लगा होगा लेकिन उतने में ही जो रोमांच हो रहा था उसका वर्णन करना संभव नहीं है| अयोध्या राम की जन्मभूमि है तो यहाँ पर रामलला बाल रूप में विराजे हैं और नयनाभिराम श्री रामचन्द्र की छवि ऐसी है जैसे बाल गोपाल जी की होती है| उन्हें देखते ही मन एकदम शांत हो गया था और स्थिर चित्त से उनके दर्शन हुए| बहुधा भीड़ भाड़ के कारण मंदिरों में शांति से दर्शन नहीं हो पाता है लेकिन श्रीराम जी कृपा से उस समय बहुत भीड़ नहीं थी तो ठेलमठेल भी नहीं हुई ना ही सुरक्षा कर्मियों ने एकदम से भगाया इसलिए जी भरकर उन्हें निहारने का अवसर मिला| राम जी कृपा हो तो सब संभव हो जाता है| मेरे बड़े बेटे ने दान पात्र में पैसे डालने के लिए हाथ बढ़ाया और प्रणाम कर ही रहा था कि पंडित जी ने भगवान राम पर चढ़े फूल और प्रसाद निकालकर उसके हाथ में दे दिया| शेष सभी को तो पहले से पैकेट में बंद प्रसाद ही मिल रहा था लेकिन उसको जो प्रसाद मिला वह सीधे रामलला के चरणों से आया थो हम सभी के आनंद की कोई सीमा नहीं रही| हमने जी भरकर रामलला का दर्शन किया और फिर हाथ जोड़कर सदा हम पर अपनी कृपा दृष्टि रखने और अपनी भक्ति का आशीष देने की प्रार्थना करके आगे बढ़ गए| दर्शन के बाद जो मार्ग हैं उसमें पुरातत्व विभाग द्वारा सर्वेक्षण के समय निकले विभिन्न मूर्तिओं और अन्य प्रतीकों को रखा गया था जिन्हें देखते और उनके विषय में जो कुछ लिखा है उन्हें सार में पढ़ते हम आगे बढ़ चले|
राम लला के दर्शन के बाद हम आगे हनुमान गढ़ी में विराजे बजरंग बलि के दर्शन के लिए बढ़ चले| माँ के लिए चढ़ाई बहुत थी और कोई दूसरा साधन नहीं मिला तो हम बीच-बीच में रुकते हुए मंदिर की ओर जाने लगे| जब हम मंदिर पहुंचे तब वह दर्शन के लिए बंद था और अभी खुलने में और आधे घंटे का समय था इसलिए जहाँ से प्रसाद लिया था वहीं थोड़ी देर बैठकर गर्मी शांत करने के लिए ठंडा पेय भी लिया| मंदिर के अंदर आने पर पता चला कि यहाँ पीने के लिए ठन्डे पानी की व्यवस्था है और उस पानी का स्वाद भी बहुत मीठा था| जब दर्शन शुरू हुआ तो इस मंदिर में थोड़ी भीड़ मिली और बच्चों और बुजुर्गों के साथ दर्शन करने में थोड़ा श्रम करना पड़ा लेकिन फिर भी दर्शन तो प्राप्त हुआ| फिर हम बाहर दूसरी मार्ग से निकले तो पता चला इस ओर से आने पर मंदिर के बहुत पास तक रिक्शा आता है| मंदिर के पास ही राज-सदन और रानी बाजार के आस पास पूजा सामग्री आदि की बहुत सारी दुकानें हैं जिनमें से कुछ सामान लेने के साथ हम आगे बढ़ गए| तब तक मौसम थोड़ा बिगड़ने लगा था तो हम वापस होटल आ गए जिसके बाद कुछ देर तक अच्छी बारिस भी हुई| होटल में बालकनी आदि में घेरे लगे थे क्योंकि इस क्षेत्र में बन्दर बहुत पाए जाते हैं| लेकिन हमने यह अनुभव किया की श्री राम की भूमि में बंदर भी शांत ही थे और पांच साल के हमारे बच्चे ने उन्हें कुछ खाने को दिया तो बड़े आराम से लेकर चले गए| पिताजी ने भी कहा कि नटखट कृष्ण जी के मथुरा वृन्दावन के वानर भी नटखट होते हैं और छीनझपट कर ले जाते हैं लेकिन यहाँ के बन्दर शांत हैं|
जब पानी रुक गया तब फिर एक बार अन्य मंदिर और दर्शनीय स्थलों पर जाने की इच्छा से होटल से निकल पड़े और होटल के सामने से एक रिक्शा ले लिया जो हमें जानकी मंदिर, कनक भवन आदि की ओर ले चला| राम मंदिर काम जोरों पर था और उसके आस पास परिक्रमा आदि का मार्ग सुगम बनाने के लिए चारों तरफ के पुराने पूजा स्थल और घर आदि तोड़े गए थे| रिक्शा वाला हमें अलग मंदिर भवन आदि दिखते वाल्मीकि भवन ले गया जिसकी भित्तियों पर वाल्मीकि रामायण अंकित है और साथ ही रामनाम बैंक भी जाना हुआ जहाँ विश्वभर के राम सनेही उनके नाम की पुस्तिका में हजारों बार राम नाम लिखकर यहाँ जमा कराते हैं| बाद में पता चला कि हमारा रिक्शे वाला मुस्लिम था लेकिन उसको यहाँ के हर छोटे बड़े मंदिर और भवनों का महत्त्व पता था जो हमें रुक रुक कर बताता जाता था| कई रस्ते बंद होने के कारन कई जगह पर थोड़ असुविधा हुई और बुजुर्ग माता-पिता और बच्चे साथ होने के कारण हर जगह जाना संभव भी नहीं हो पाया और फिर जितने दर्शन हो सके उतना कर हम वापस होटल की ओर चल दिए| रात में भोजन के बाद मैं और पिता जी एक बार फिर आस पास थोड़ा टहलने निकले|
अगले दिन सुबह सबेरे उठकर तैयार हुए और नाश्ता करने के बाद नौ बजे तक स्टेशन के लिए निकल पड़े क्योंकि सुबह दस बजे अयोध्या से काशी जाने के लिए हमारी ट्रेन थी| स्टेशन पहुंचकर रास्ते में बच्चों के खाने के कुछ और सामान लेने के साथ खीरे और केले आदि लेकर हम स्टेशन आ गए| स्टेशन पर बहुत बन्दर थे और बच्चे के हाथ में केला देख एक बन्दर कूद आया| अचानक बन्दर के आने से भौचक्के हुए बच्चे के हाथ से थैला लेकर सीधे स्टेशन की छत पर चढ़ गया| हम सब हँस पड़े और पिता जी ने कहा कि चलो श्री राम की ऐसी ही इच्छा थी| जब हमारी ट्रेन आयी तब मन में फिर से अयोध्या धाम आने की आकांक्षा लिए और श्री राम जी को बारम्बार प्रणाम करते हुए हम चढ़ गए और भगवान विश्वनाथ के धाम वाराणसी के लिए निकल गए|
अब जब राम मंदिर बन गया है और उसमें रामलला की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठित हो गयी है तो मन में लालसा जय कि जल्दी ही फिर से उनके धाम पहुंचकर दर्शन करने को मिले तो बड़ी कृपा हो| सियावर राम चन्द्र की जय|
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यह आलेख गर्भनाल पत्रिका के फरवरी २०२४ अंक में प्रकाशित हुई
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